राइमुनिया!

किराये का घर , दो कमरे और किचन,
और बस उनके ऊपर की इतनी ही छत
दुनिया थी मेरी
यहीं आती जाती गुलाबी धूप, टीन के डब्बो में लगा सदाबहार , नाइन ओ क्लॉक,
मेरी बगिया।
जहाँ खड़ी, कौवों की कांव कांव सुनकर मैं नाच उठती,कि शायद आज आएगा वो !


आज वो आया ! नोबची के फूल धूप में मुस्कुरा रहे थे ! मैंने सुना उन्हें खिलखिलाते हुए, बातें करते हुए, ऐसे कि गला सूखने लगा था उनका !
बाल्टी मग लेकर मैं लँगड़ाती हुई टीन के डब्बो में पानी सींचने लगी !
माथे पर हाथ रख कर ऑंखें ढक कर , मेरी निगाह चढ़ते सूरज पर थी, और उसकी , मेरी लंगड़ाती टांग पर!

क्या हुआ ? ऐसे क्यों चल रही हो? ये दुनिया के सबसे हमदर्द शब्द थे, उस समय!
मेरे प्यार की ट्रेन भाप के इंजिन के साथ धीरे धीरे दरक रही थी
टीन के डिब्बों में पानी सींचते सींचते मैं कब नोबची का फूल बन गई जो धूप देखते ही खिल उठते , और धूप जाते ऐसे मुरझाते के बेजान !
वो धूप,
धूप झूठी हो ही नहीं सकती , ऐसा भरोसा

पता नहीं ! एक छोटा सा दाना उभरा है टखने के ऊपर, थोड़ा दर्द है, पर कोई बात नहीं ठीक हो जायेगा ! मैंने पानी की बाल्टी सरकाते हुए कहा !
अरे तो एंटीबायोटिक लगा कर धूप में पैर रखो थोड़ा अभी ठीक हो जायेगा ! अच्छा बहुत देर हो गई, घर जाना है, कहकर वो चल दिया !
ऐसे भोलेपन को क्या ही कहें !! उसके जाते ही, मेरी टांग एंटीबायोटिक क्रीम के साथ धूप में सिक रही थी !
अगले दिन फाइनल एग्जाम! एग्जाम हॉल में चलते चलते सीड़ियों से गैलरी तक खून की लाइन बनी हुई थी ! मैं लंगड़ाती हुई भाग रही थी , दर्द का अहसास ही नहीं था ! पीछे से केमिस्ट्री प्रोफेसर आवाज़ लगा रही थीं, ये क्या हुआ तुम्हें, रुको, फर्स्ट एड रूम में चलो ! मैं चल पड़ी!

यह बात बड़ा मज़ाक थी ! मज़ाक़िया हंस हंस कर सबको बताता, देखो इसने क्या किया ! सालों तक यह मज़ाक चला, सभी मेरी बेबकूफी पर हॅसे, और मैं उसी नादानी के साथ सबको वह घाव दिखाती रही !
नोबची का फूल धूप से क्या सवाल करे, कि बादलों की नाव पर सवार हो गोते क्यों लगाते हो? धूप के लिए कौतुक , नोबची के लिए घाव !

स्कूल में स्पोर्ट्स पीरियड में खेलते हुए, एक बार मैं ज़ोर की गिरी, दोनों घुटने छिल के लाल! मेरी सहेली ने देसी नुस्ख़ा बताया ! कागज की पर्ची फाड़ी, और घाव पर चिपका दी !

समय के साथ मैं न जाने ऐसी कितनी पर्चियां उस डायरी में से फाड़ कर घाव पर चिपकाती रही, जिसमें मेरे मन के तार जकड़े थे !जहां उंगली फिसलती तार टूटते ! वक्त के साथ घाव ख़त्म होता दिखता और जैसे ही खून के थक्के के साथ ऊपर सूख चुकी कागज की पर्ची हटाती, घाव फिर ताजा हो जाता !

वह करीब दस साल बाद विदेश से लौटा है ! आज टीन के डब्बों में पानी सींचते हुए मुझे कौओं की कांव कांव सुनाई दी! माथे पर हाथ रख कर मैंने आसमान में देखा, एक हवाई जहाज दिखा ! क्या पागलपन हैं ये? मैंने खुद को समेटने की कोशिश की !
कुछ घंटे बाद मेरी आँखों पर किसी की अंगुलियां थीं ! धुप खिल रही थीं !
उसने मेरे हाथ में कुछ रखते हुए मेरी हथेलीअपने हाथ से ढक ली! बताओ क्या होगा? मैं चुप थी!
हथेली खोलते हुए उसने कहा, याद है, पहली बार तुम्हें मैंगो बाईट टॉफी दी थी और कहा था दुनिया की सबसे मँहगी चॉकलेट ला कर दूँगा!

मेरी नज़र उसकी कॉलर से चमकते हुए गर्दन के निशान पर पड़ी !
बाजार से खरीदी चीज़ें कभी कभी मन हल्का कर दें , पर रिश्तों पर भारी पड़ जाती हैं! उसे नहीं पता था पिछले दस सालों में मेरी मुठ्ठी मेंगो बाइट टॉफी से बड़ी हुई ही नहीं !
मैं घाव पर लगी कागज की पर्चियां उधेड़ने लगी ! घाव फिर इतना गहरा हो गया, कि अंगुली का आधा पोर घुस जाये !
नोबची का फूल अब राइमुनिया बन गया जिस पर धूप का कोई असर नहीं, जरा सी हवा में बिखर जाये !
ज़िन्दगी रेल की पटरियों सी !
भाप का इंजिन भभक भभक रो रहा है, पर ट्रेन दरकने का नाम न ले रही!

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दीप्ति

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मैक डी वाला पहला प्यार !!

ये उन दिनों की बात है ….
क़ुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में रचे बसे , मैंने दिल्ली के एक नामी कॉलेज में पोस्टग्रेजुएशन में दाखिला लिया था
मैं जिस शहर से थी, उस कॉलेज की कैंटीन, बाहर बने चाय के ढाबे और धुंध में सिगरेटों के धुओं को मिलते देखने वाले उस डब्बे पर , उस शहर को स्माल टाउन कहा जाता ! अलबत्ता मैं थी स्माल टाउन गर्ल!
ग्रेजुएशन कम्पलीट हो गया था, कॉलेज के दिनों में जितने रंग बिरंगे शरबत कॉलेज की कैंटीन, लॉन, मंदिर और गैलरी में घुले थे, उनसे जैसे पानी अलग मिठास अलग होने लगी थी ! इश्क़ की चादरों पर चढ़े आशिकी के रंग उतरने लगे थे! कुछ खानाबदोश अब भी खुशहाल थे !

वह मेरे कॉलेज का नहीं था, पर मुझे लगता है, उसके कॉलेज से ज्यादा अटेंडेंस उसकी मेरे कॉलेज में लगी होती होगी! उसका घर मेरे घर से बस दस मिनिट की दूरी पर था, पर दस मिनिट की ये दूरी दुनिया के दो छोरों से कम न लगती ! उसके घर जाती या वो फोन करता घर आ रहा हूँ मिलने, यकीन मानो इन दस मिनिट में कितनी बार उल्टी गिनती पढ़नी पढ़ जाती, के बस दिल फट कर बाहर न फिक जाये !

स्माल टाउन गर्ल अब मेट्रोपोलिटन बनने जा रही थी!वो कारीगर था मेरा! मेरे हर गवारु काम पर वह उफ़ करके रह जाता, कभी सर पर हाथ पटक लेता, कभी मुस्कुराकर रह जाता! हर कमी से वाकिफ़ था मेरी और उसे फिक्र भी थी मेरी ! मेरे बिना कुछ खा लेना भी उसे गिल्ट में डाल देता ! आज उसके कॉलेज में कैंपस प्लेसमेंट चल रहे हैं ! एच आर मैनेजर्स के लिए पिज़्ज़ा और गार्लिक ब्रेड मंगाई गई! पिज़्ज़ा के दो स्लाइस और एक स्लाइस गार्लिक ब्रेड उसके हलक से नीचे न उतरे, मैं जो नहीं थी वहां !!
तुरंत उसने फ़ोन किया मुझे ! शाम को घर आ रहा हूँ ! तैयार मिलना! तुम्हें इटालियन रेस्टोरेंट ले जाने वाला हूँ! सच कहूँ उसे पता था पिज़्ज़ा क्या होता है,अब तक मुझे नहीं पता !
मैंने शिमर ब्लैक टॉप पहिना पिंक स्कर्ट और ऑफ वाइट फ्लैट प्लेटफार्म हील! और उसके साथ यह भी याद है, कि घर आ कर रात भर मैंने उल्टियां की, ये चीज़े खाने की प्रेक्टिस नहीं थी मुझे ! मैं क्यों ये डिटेल दे रही हूँ?
चीज़ें दिल में गहरी उतरी हों तो एक एक डिटेल ऐसे ही याद रहती है !
शहर का हाई प्रोफाइल क्लासी रेस्टोरेंट ! स्टेशन के पास बानी इस जगह ने मुझे इतना क्लासी बना दिया कि वहाँ बिताये एक घंटे में एक बाईट भी बिना छुरी कांटे के नहीं खा सकी !उसका यह अहसान कभी तो उतारना था मुझे !


अब पहुंची मैं मेट्रो सिटी ! कॉलेज के पहले दिन ही अलग अलग ग्रुप्स बन गए ! कुछ हाई क्लास स्टूडेंट्स ने मुझ से बात करने में इंटरेस्ट दिखाया और पूछा, हे !! हम एक मीटअप कर रहे हैं ! एम् टू के में ! तुम इनटेरेस्टेड हो ?
मैं कुछ कह पाती कि आवाज़ आई, अरे पूछने की क्या बात है? हाँ चलेगी ! मेरी फ्रेंड ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ एग्जिट गेट की तरफ चल पड़ी ! चल बाहर हमारी मर्सिडीज़ खड़ी है ! मेरा मन घबरा रहा था, मर्सिडीज़ !! अब तक तो किसी कार का इंटीरियर भी नहीं देखा था ! मैं पीछे वाली सीट पर बीच में बैठूँगी! गेट नार्मल कार जैसा ही खुलता होगा या कुछ और सिस्टम हुआ तो , गुगली हो जाएगी !!
एम् टू के पहुंच कर हम मैक डी गए ! आने के पहले मैंने पिज़्ज़ा तक की ट्रेनिंग ली थी, पर वहां बर्गर तो सिलेबस में पढ़ाया ही नहीं गया था ! एनीवेस !! आर्डर प्लेस करने से लेकर बर्गर को रेपर में ही लपेटकर, सॉस पाउच से धीरे धीरे केचप ड्रिप करके , खाने की कला मैंने लगभग बीस मिनिट में सीख ली थी!


अहसान उतारना था उसका, जो अब इस बड़े शहर में इंजीनियर की नौकरी करने आना वाला था! मैं ख़ुशी में पागल उसे रेलवे स्टेशन रिसीव करने गई ! उसका हाथ पकड़ कर भरी बसों में कैसे पीछे वाले गेट से चढ़ना है, और आगे वाले गेट से उतारना है, मैंने उसे सिखाया ! यहाँ लेडीज सीट्स रिजर्व्ड होती हैं ! उस पर नहीं बैठना है !बस से उतरकर मेट्रो स्टेशन पर टिकट के लिए लाइन में न लगना पड़े, तो मैंने दो मेट्रो कार्ड बनवाये ! कार्ड पंच करके एग्जिट पर अपने आप किराया कट जाता है! मतलब अब तक जो सीखा सब उसे बताया !
मेट्रो से उतरते ही भूख ने आगे चलने से मना कर दिया ! चलो तुम्हें अच्छी जगह ले चलती हूँ, मैंने कहा ! अरे अभी रहने दो ! आराम से कभी चलेंगे, फर्स्ट सैलरी आने दो ! वह कुछ सकुचाया !
मैं पलटकर बोली, इस शहर में मैं तुम्हारी सीनियर हूँ! जो कहूँ चुपचाप करते जाना !
हम मैक डी पहुंचे, जा कर फर्स्ट फ्लोर की ग्लास वॉल साइड सीट हमने ली, जहाँ से सारा शहर दौड़ता भागता दिखाई दे रहा था ! दस मिनिट साल से दिखने वाले लोगों को पिछले दो महीने कैसे बीते, जानना हो तो राउंड अबाउट पर रेड लाइट को ग्रीन होते देखने जैसा ! हर सेकंड भारी !
मैं अभी आती हूँ !!
वह ग्लास के बाहर उसी ट्रैफिक सिग्नल को देख कर खोया हुआ था, कि मुझे देख कर वापस होश में आया ! अरे कहाँ चली गई थी !
उसने भौहें चढ़ा कर कहा ! आहाँ !! मुझे क्यों नहीं बुलाया !!
सामने ट्रे में बर्गर फ्रेंचफ्राइस और कोल्डड्रिंक रखी हुई है! मैंने उसे बर्गर थमाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया! उसने हाथ से बर्गर ले कर वापिस ट्रे में रख दिया ! और मेरा हाथ अपने हाथो में समेट लिया !
चहकती आवाज़ें बर्फ होने लगीं ! ख़ामोशी लावा सी पिघल रही थी ! उसकी वीरान आँखों में मुझे चमकते न जाने कितने तारे दिखने लगे, जिन्हें देखने मैं रात भर खिड़की पर बैठी रह सकती थी ! हमारे पास कहने सुनने कुछ नहीं था ! तो बस मैंने सॉस पाऊच उसकी तरफ बढ़ाया,ओपन नहीं हो रहा है! उसने सॉस पॉउच ओपन किया और मेरी तरफ बढ़ाया !
कुछ मुलाकातें होने के बाद अपना होना ज़िन्दगी भर के लिए छोड़ जाती हैं !
ये सॉस पाउच हमारी हर मैक डी मुलाक़ात का बेसिक कॉन्वर्सेशन पॉइंट था ! बिना कुछ कहे जो प्यार, केयर सब ज़ाहिर कर देता था !
आर्डिनरी डेज में दिन चीज़ों को बड़ी आसानी से हम डिपेंडेंसी और कुछ और आगे चलकर बेबकूफ़ी कह देते हैं, प्यार में पड़े लोगों के लिए वह प्यार ज़ाहिर करने और प्यार एक्सेप्ट करने का जरिया होती हैं !
मैं काफी समय इस बड़े शहर में बिता चुकी थी, यहाँ कुछ भी गलत होने पर दो मिनिट में पी सी आर, वुमन हेल्पलाइन बुलाकर लोगों को सीधा करने से लेकर , दुनिया जहान अकेले ट्रेवल करना, खुद अपने हर काम को करने तक हर तरह का एक्सपीरियंस मुझे होता जा रहा था पर मैक डी में जा कर कम्बखत सॉस पाउच ओपन करना नहीं आता ! जब भी वहाँ बैठते, ट्रे रखते ही वह सारे सॉस पाउच एक एक कर ओपन करके मेरे सामने रख देता !

इन बचकानी बातों को अब कई साल हो गए हैं ! हमने ज़िन्दगी में काफी तरक्की कर ली! पर फिर एक सुबह उसका फ़ोन! मैं दिल्ली आया हूँ ! मैक डी !! मिलने आ रही हो न !!
ज़िन्दगी में हर सिलसिला चलता ही छूटने के लिए है ! और खामोश रहकर आँखों से बातें करने के दिन शायद पूरे हो चुके थे !
रिश्ते का नाम बदलने लगा और उससे जुड़े अहसास भी !
वह क्या था और अब मेरा क्या है, मैं नहीं बता सकती ! प्रमोशन लैटर सब दिखाते हैं ! डिग्रडेशन लेटर जैसी कोई चीज़ होती है क्या?
बस ऐसे समझो कि उसके साथ वाली सीट पर कोई और बैठा था! और हमारे बीच मिनिटों का, मुलाक़ातों का, कोई हिसाब नहीं था !
मैं हाथ में बर्गर लिए न जाने किस पल के इंतज़ार में थी , कि तभी उसने मेरे सर पर हाथ से थपकी दी और कहा ! मैडम जौर्नालिस्ट !! अब तो सॉस पाउच ओपन करना सीख लो ! शायद उसे ऑड लग रहा था ! मैं मुस्कुरा दी ! हाथ से बर्गर वापस ट्रे में रख दिया! उसे कैसे बताती, कि इस पल से मैंने यह बर्गर खाना छोड़ दिया है, मैं डाइट पर हूँ !
नॉन स्टॉप लाफ्टर में अब भी मैं उन उदास मुलाकातों की ख़ामोशी को तलाश रही थी !


सुनो !!
उस सॉसपाउच ओपन करने और न करने के बिछ कुछ सरक गया है ! जो चाह कर भी हाथ नहीं आ रहा ! बाकी सॉस पाउच मैं कब ओपन करना सीखूंगी, उसका चुनाव मेरा ! मेरी ज़िन्दगी के फैसले मैं खुद लेती हूँ !

ऑफिस से घर जाते, अचानक कुछ सिहर सा गया मन में ! ड्राइवर कार टर्न करो ! कनॉट प्लेस ले चलो! आज मैं फिर उसी मैक डी में बैठी थी ! पिज़्ज़ा खा कर रात भर कि उल्टियां यद् आई, छत का किनारा याद आया ! मेरी पहिनी स्कर्ट और तुम्हारा जीन्स याद आया ! कॉलेज की फेयरवेल और तुम्हारा स्कूटर याद आया ! पर कुछ है, जो याद करके भी याद नहीं आ रहा ! और मैं उसे तलाशना भी नहीं चाहती !


तुम्हारी
दीप्ति !

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लाइफ अपडेट

कभी कभी कुछ बहुत अच्छा पाने की ज़िद में हम वह भी खो देते हैं जो अभी हाथ में है ! मैंने लगभग सेवेंटी थ्री पोस्ट्स की और कुल सौ में से बची बाकी की कहानियों को आउट ऑफ़ द वर्ल्ड लिखने कहने की ज़िद में,जाने कब से छोड़ रखा था !
हर दिन सोचती थी रिवाइव करना है , पर सच कहूं हमारा खुद का ही इनरसिआ हमें निष्क्रिय बना देता है ! बात और है, हमारे सरकमस्टान्सेस और दुनिया पर कितना ही दोष मढ़ लें!
रात के करीब एक बज रहे हैं ! मैं सो भी नहीं पाऊंगी और सुबह उठने का समय हो जायेगा ! पर आज जो भी हो, बेजान मन को कुछ हिम्मत और कुछ रेस्पॉन्सिबिलिटीज़ का अहसास कराये बिना,हार नहीं मानूगी ! मैं आज फिर उसी लाइन पर खड़ी हूँ, जहाँ मन में न जाने कितना बवाल मचा हो,हाथ में पेन आते ही सब शून्य! मन ने ऐसे ही चला रखा है ! दिन से बचा खुचा काम समेटर, मैं इस कमरे से उस कमरे, किसी का तकिया चेक करती कभी किसी का ब्लेंकेट, बस देखने खड़ी रहती, कि सब आराम से सो रहे हैं या नहीं !
बाहर सन्नाटा तोड़ती हवा, झरझराते पत्ते हैं ! बाहर जाने का मन बहुत है! पहले घर के पीछे घना जॅंगल हुआ करता था पर प्रोग्रेसिव वर्ल्ड होने पर ख़ुशी जताऊं या उसकी लपटों में आ कर तवाह होते जंगल और जंगली जनवरों के लिए दुखी होऊं ! देखते ही देखते यहाँ पेड़ों की जगह बिल्डिंग्स ने ले ली ! कमरे की खिड़की से रौशनी छन रही है ! और टेबल लैंप की रौशनी यहाँ वहां न बिखरे, मैंने उसे चादर ओढ़ा रखी है !
अभी भी दिमाग शून्य है ! क्या लिखने बैठी थी क्या लिख रही हूँ पता नहीं! पर बेलगाम होते दिमाग को रास्ता दिखाने का सबसे सही उपाय है यह! कभी आज़मा कर देखना ! मन में इतना सन्नाटा !! कभी देखा सुना नहीं मैंने ! इतना कि मैं एमलैस हो गई हूँ !
घर में ठिकाने ढूंढने वालों को यह भी न पता हो घर कहाँ है ! तो चलो पहले एक घर ढूंढती हूँ! मिलते ही आऊंगी फिर वापस! उसकी खूबसूरती लिखने !
दीप्ति !

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बादलों में ख्वाब!

मेन मार्केट में दस बाई दस के छोटे से कमरे की एक दबी सहमी सी खिड़की से अकील ने झांक कर बाहर देखा! ठण्ड बढ़ने लगी थी और शहर धुंध की परतों में लिपटा ऊंघ रहा था ! गली के नुक्कड़ पर बनी चाय की गुमटी से खौलती चाय पत्ती और अदरक की तेज़ महक हवाओं में घुल कर आने लगी ! और साथ ही कढ़ाई में तलते भजिये पकोड़े जैसे लोगों को खींच रहे हों , नाश्ते की दुकानों पर भीड़ बढ़ने लगी थी !
उसने एक गहरी साँस भरी और इस एक साँस में उसने पहाड़ों में फैली न जाने कितने सालों की यादों को समेट लिया था ! अकील के अब्बू को गुज़रे चार साल हो गए, और माँ घर के ही बाहर एक चाय पकोड़े और मैगी की दुकान से घर चला रही हैं ! टूरिस्ट सीजन आते ही जैसे दुकान पर लोगों का ताँता लग जाता, और चार पाँच महीने में इतनी कमाई हो जाती, कि बाकी का साल गुज़ारा जा सके!
उसे पता था पहाड़ों में बर्फ पड़ गई है ! तभी तो यहाँ दिल्ली में पारा नीचे गिरता जा रहा है ! बाहर से बारिश की बूंदों की आवाज़ आई! बदहवासी से भागता हुआ वह छत पर जा पहुंचा! बेशक उसके हाथ पैर बर्फ से ठण्डे पड़ रहे थे पर मन पसीजता जा रहा था ! चेहरे को छूती सर्द हवा उसे पहाड़ों की कुमलाहट भरी नरमी देने लगी ! थोड़ी देर की बेमौसम बरसात से मौसम कुछ साफ़ हो गया और आसमान में बादल छिटके दिखने लगे ! इन उड़ते बादलों में बनते बिगड़ते न जाने कितने आकार वह देख सकता था पर फिलहाल उसे जो नज़र आ रहा था वह था नूर का चेहरा! अकील पहाड़ों से दूर आ गया था, पर नूर जैसे हर दिन चमकती धूप सा उसे छू कर चली जाती !
वह भाग कर कमरे से एक चाय पत्ती का डब्बा उठा कर लाया ! हाँ डब्बा चाय पत्ती का था, जो कुछ समय पहले उसके एक दोस्त ने उसे मुन्नार से ला कर दिया था, तोहफे में, पर अब इसमें चाय पत्ती नहीं, नूर की यादें रखी हुई थीं, जो वक़्त के साथ कसैली होती जा रही थीं ! जब जब अकील को उसकी याद आती, वह नूर के नाम खत लिख कर इस डब्बे में रख देता, वही खत जो कभी नूर तक पहुंचेंगे या नहीं, अकील खुद भी नहीं जनता था!
अकील ने हाँफते हुए कागज़ पर लिखना शुरू किया, नूर, पूरे अस्सी दिन हो गए तुम्हें न देखे हुए! परीक्षा के बाद लगा, रिजल्ट वाले दिन तो कम से कम तुम मिलोगी, पर तब भी तुम नहीं आई, कितने ही दिन मैंने पहाड़ी पर तुम्हारा इंतज़ार किया, पर अब कुछ डर मन में कौंधने लगा है ! सब ठीक तो है न! मैंने कोशिश की तुम्हारे घर जा कर पता करने की, पर मुझे ऐसा क्यों लगा कि तुम्हारे अब्बू को मेरा तुमसे मिलना नागवार है ! ऐसा क्या हुआ, हम बचपन से तो मिलते आ रहे हैं, पर अब न जाने क्यों उनकी नज़रों में कुछ उखड़ा हुआ सा था! मुझे तुम्हारी याद से ज़्यादा तुम्हारी फिक्र हो रही है ! मुझे यहां दिल्ली में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव कि नौकरी मिल गई है ! बस दुआ करता हूँ, मैं इस काबिल बन सकूँ, कि तुम्हारे अब्बू के सामने खड़े होने में कोई हिचकिचाहट न हो !

इस पन्ने को भी अकील ने इतनी तहों में मोड़ दिया, जितना कि मन! और जा कर डब्बे को किचन में वापस रख दिया !
कॉलेज से घर आते हुए धूप में सुस्ताने अक्सर वह नूर के साथ घर के सामने वाली पहाड़ी पर बैठ जाता ! बैठ कर दोनों आगे आने वाले दिनों के न जाने कितने चित्र बनाते और उनकी कल्पना बादलों में करते ! और इन्हीं बनते बिगड़ते बादलों के फ़ाहे में अकील ने खुद को नूर का हाथ थामे देख लिया! जहां मन मिलते हों,वहां शब्दों की जरुरत नहीं होती ! बे सर पैर का कोई बेहुदा सा चुटकुला सुना कर खुद ही ठहाके लगाने वाली नूर ज्यों ही आसमान की तरफ देखी तो अचानक शांत हो गई! फिर हैरत भर वह अकील की तरफ देखी! नूर ने बादल के उस फाहे में अकील का मन पढ़ लिया और खिलखिलाती पहाड़ी पर घंटों का सन्नाटा पसर गया !
ख़ामोशी में कितनी बार अकील को लगा कि रेत में टिके नूर के हाथ पर अपना हाथ रख दे,थाम ले उसका हाथ, पर किस पहचान के साथ उसे भरोसा दिलाये? अकील सहम जाता! ऊँचे लगे चीड़ देवदार के पेड़ों से चुप्पी रिसने लगती! जैसे कुछ हुआ ही न हो और नूर फ़ौरन अपनी भौहें उचका कर कहती, अच्छा कॉलेज ख़त्म होने को है, कुछ सोचा है आगे क्या करना है !
अरे अब घर चलें, नहीं तो आगे की सारी पढ़ाई तुम्हारे अब्बू अभी करा देंगे, अकील भी हंस कर चल पड़ता!


शहर में नौकरी करते हुए लगभग छह महीने बीतने को हैं! माँ कब से अकील को छुट्टी ले कर मिलने को कह रही है ! अकील आज गांव पहुँचा! दोपहर से शाम और शाम से सुबह हो गई! पर नूर के बारे में कोई खबर नहीं! जा कर वह दुकान पर बैठ गया ! अभी ऑफ सीजन होने कि वजह से घाटी में टूरिस्ट्स नहीं हैं! गाँव के कुछ लोग दुकान पर चाय पीने बैठे हैं ! तभी अली चाचा का ज़िक्र आया ! अरे उनकी बेटी बहुत बीमार है ! उसे ले कर ही शहर गए हुए हैं !
अकील के शरीर में जैसे बिजली का कोई ज़ोरदार झटका लगा हो! सुबह सुबह पहाड़ों कि रूहानी तासीर जैसे मन को खोखला करके छोड़ती जा रही हो ! कहते हैं, पहाड़ हर चीज़ को दुगुना कर देते हैं ! चाहे ख़ुशी हो, दुख हो या अकेलापन! शहर जाने का बिलकुल भी मन नहीं था उसका, न ही किसी नौकरी का पर घर की जिम्मेदारियां अब अकील के हिस्से में थीं ! माँ कब तक दुकान पर बैठती रहेगीं? और फिर छोटे भाई की पढ़ाई ! अगले दिन अकील वापस शहर चला गया ! एक साल फिर गुजरने को था ! अकील को प्रमोशन मिला ! आज फिर वह कागज़ कलम ले कर बैठा और लिखना शुरू किया, नूर, शहर बहुत कुछ सिखा रहा है और मैं भी बदल रहा हूँ !पर मेरे दिल का एक कोना है, जहाँ बस नूर की मालिकियत है! इस कोने में नूर का शहर बसा है, जिसे खाली करना मेरे वश में नहीं है ! ज़िन्दगी के आखिरी दिन भी खुदा मुझ से मेरी ख्वाहिश जाने तो मैं तुम्हारा हाथ थामना चाहूँगा, बची हुई सारी उम्र के लिए ! और ये खत भी तब तक लिखूंगा, जब तक तुम्हें एक बार देख नहीं लेता !
तभी फ़ोन कॉल की आवाज़ से जैसे अकील नींद से जागा !
इस पन्ने को भी कई परतों में मोड़कर उसने उसी चाय पत्ती के डब्बे में रख दिया और डब्बा किचन में जा कर रख दिया !
एक रोज़ बड़ी ही ज़ल्दबाज़ी में अकील भागा जा रहा है ! आज शहर के बड़े ही नामी डॉक्टर के साथ उसे मिलना है, अपनी दवा कंपनी का एक प्रेजेंटेशन भी देना है ! सारे मरीज़ देखने के बाद डॉक्टर अकील से मिलेंगे! उनके असिस्टेंट ने अकील को इंतज़ार करने को कहा ! तभी अकील की नज़र सामने जमुनी रंग के दुपट्टे पर गई ! यह तो वही दुपट्टा था, कॉलेज के रस्ते पड़ने वाली रंगरेज़ की दुकान पर उसने जिसे नूर के साथ रंगने डाला था, और दुपट्टा रंगवाते हुए उसे कहाँ ही पता था, कि यह रंग उसके तसव्वुर पर भी चढ़ जायेगा !
नूर निढाल सी बैठी थीं , कि अकील ने आवाज़ दी, नूर ?? तुम यहां ! तभी सामने दवाई कि दुकान से अली चाचा लौटकर आ गए ! दूर शहर पहचाना चेहरा ही सबसे अपना लगता है ! अली चाचा ने बताया, नूर को लेकर हर दिन आना है अभी सात दिन तक ! उच्च टेस्ट होने हैं! इस शहर में तो महगाई इतनी! समझ नहीं आता कैसे क्या करूँ !
नूर को देख कर बस तसल्ली थी, इतनी तसल्ली की उस से कुछ भी पूछना कहना ठीक नहीं लगा ! अचानक मिली ख़ुशी और तकलीफ जब एक साथ मिल जाएँ तो न खुल कर हँसा जाता है, न रोया! वह भी छुई मुई सी सिमटी चुपचाप बैठी रही!
अकील ने कहा, चाचा, ये भी कोई परेशान होने की बात है ! आपने पहले कभी एक बार बताया तो होता ! कहीं और जाने की जरुरत नहीं है ! आप चलिए मेरे साथ ! वैसे भी आज कल ऑफिस में काम बहुत है, तो मैं बहुत देर से घर पहुँचता हूँ ! ये रही कमरे की चाबी! आप सीधे वहां पहुंचिए ! और जब तक दिल्ली में हैं, वहीं रहें ! अली चाचा की आँखों में आशा तैरने लगी !
शाम को अकील जब घर पहुँचा, अली चाचा नूर को ले कर वापस अस्पताल चले गए थे ! अकील उनके खाने का बंदोबस्त करने किचन में गया तो देखा, चाय पत्ती का डिब्बा वहां नहीं है ! उसने दिमाग पर ज़ोर दिया, और बहुत अच्छे से याद किया, पिछली बार वह खतों से भरा डब्बा यहीं रखा था! उसके दिमाग की नसें जैसे फटने को थीं, क्या पता चाचा या नूर चाय बनाने किचेन में आये हों, चाय की पत्ती समझ कर डब्बा खोला हो और खुदानखास्ता किसी तरह खत हाथ लग गए हों तो !! न जाने कौन सा लिखा शब्द नूर की ज़िन्दगी पर कैसा असर डाले ! एक लफ्ज़ की गलती भी न जाने कितने नए मायनों को ज़िन्दगी में जोड़ दे! उसे कितना अफ़सोस था कि इन खतों को उसने फाड़ कर क्यों न फेक दिया, पर जिस खत के हर लफ्ज़ में उसने अपने मन की गहराइयों को लिखा था, उसे फाड़ देना इतना आसान था क्या?अकील के मन में उदासी के बादल गहराते जा रहे थे और कमरे में जलते जीरो वाट के बल्ब की हल्की पीली रौशनी माहौल को और उदास करती जा रही थी!लगा जैसे कमरा ज़ोर ज़ोर से गोल गोल घूम रहा हो ! वह कमरे की हर अलमारी हर बक्से में डब्बा ढूंढता रहा पर वह न मिला !
देर रात नूर वापस आई पर अकील की हिम्मत जवाब दे गई, डब्बे के बारे में कुछ भी पूछने की !सुबह सुबह चाचा नूर की रिपोर्ट लेने हॉस्पिटल गए हुए थे ! नूर ज़मीन पर बिछे गद्दे पर निढाल सो रही थी ! अकील ऑफिस जाने वाला ही था, कि उसकी नज़र भटकते हुए किचन की तरफ गई, उसने अपनी ऑंखें फिर मली और देखा डब्बा वापस जगह पर रखा हुआ है ! मन में कितने ख्याल कौंध गए ! उसे लगा, परतों को खोल कर वापस उसके मन को बाइज़्ज़त उसी जगह दफना दिया गया हो ! डब्बे को हाथ में झपट कर अकील उसमें रखे खतों को गिनने लगा! पर गिनती में एक खत ज्यादा था ! एक मुड़े हुए पन्ने पर नूर की उँगलियों का अहसास था ! अकील की सांसें चढ़ रहीं थीं, कांपते हाथों से उसने पन्ना खोला!
अकील, उस दिन बादलों में मैंने देखा था, तुम्हारी उंगलियां मेरे हाथों में कसी थीं ! और यकीन मानो, मैं भी तुम्हारा हाथ छोड़ना नहीं चाहती थी! पर बढ़ते कोहरे के साथ मेरी खांसी भी बढ़ती जा रही थी ! बीमारी ने मुझे ऐसे घेरा, हर साँस मुश्किल होती जा रही थी ! तुम मुझे ऐसी हालत में देखकर शायद शहर आते ही न, इसीलिए मैंने तुमसे मिलना ठीक नहीं समझा!मुझ से मिलने रिश्तेदार आते जाते रहते हैं। फिर कॉलेज रिजल्ट वाले दिन मैंने तुम्हें पहाड़ी पर जाते भी देखा!

पर उसी दोपहर मेरी तबियत बिगड़ी और हमें शहर आना पड़ा! अब्बू को यूँ परेशान देख कर मैं वैसे भी बड़ी उलझन में रहती थी! जिस ज़िन्दगी का ही भरोसा न हो, मैं तुम्हें कैसे उस ज़िन्दगी में जगह देने का ख्याल भी लाती! पर, शायद तुम्हारा प्यार था, जो हर पल मेरी सांसों को मोहलत देता रहा!
आज मैं घर वापस जा रही हूँ, पर मन में एक इंतज़ार ले कर, पिछले छूटे, बंद आँखों में सिमटे हर ख्वाब का हिसाब किताब करने ! अकील आओगे न !!
अकील के मन से बोझ के बादल छँटने लगे, जैसे उगते सूरज की रौशनी के लिए जगह दे दी हो ! बाहर से आते इमामजस्ते की आवाज़, जिससे अकील उदासी में बिफर पड़ता, अदरक कूटते हुए, आज उसमें भी एक लय अपने आप पैदा होने लगी ! कहते हैं पहाड़ हर चीज़ को दुगुना कर देते हैं! वह भाग कर उसी पहाड़ी पर जाना चाहता था, जहाँ लिखी यह प्यार की इबारत भी दुगुनी की जा सके !
अकील की आँखों में तरावट आ गई ! पलट कर देखा तो नूर पीछे खड़ी थी ! खुशी का एक कतरा उसके दुपट्टे में उलझ गया ! और कुछ अकील की हथेलियों में ! इस ख्वाबों के पहाड़ी शहर में बर्फ पड़नी शुरू हो गई, और सारे गुलाबी रंग वापस आने लगे !
वह कहना चाहता था, तुम्हारी खिलखिलाहट भरी हँसी सुनकर ही चैत में बुरांश खिलते हैं !वर्फ के फाये तुम्हें देख मुस्कुराते हैं! तुम्हारी आँखों से गिरती ये बूँदें ही तो सावन लाती हैं ! उदासी मन में उतरे तो कोई अपना नहीं लगता ! मुझे तुम्हारी उतनी ही जरुरत है, जितनी उस पहाड़ी शहर को !

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आदर्श और सीख

दिल्ली का मुखर्जी नगर और इसमें हर गली नुक्कड़ों पर खुले कोचिंग सेंटर! न जाने कितने बच्चे आँखों में सपने भरकर आते हैं, ब्याज समेत खुशियां बटोरने का साहस लेकर ! और ऐसे में एक अच्छा शिक्षक एक अच्छा मार्गदर्शक आपको मिल जाए तो जीवन सही दिशा में गति पकड़ लेता है!
मिस्टर बख्शी की इंग्लिश क्लासेज !! कौन है, जो नहीं जानता ! बच्चा किसी भी स्ट्रीम का हो आर्ट्स कॉमर्स या साइंस, अंग्रेजी का सर्टिफाइड ठप्पा जब तक न लगा हो, आपका हर हुनर कमतर ही माना जायेगा ! खास कर कॉर्पोरेट्स में !
कॉलेज से घर न जा कर कर मैं अपनी सीनियर के घर पहुंची!
क्या हुआ परेशान सी दिख रही हो सब ठीक है, उसने पूछा !
हाँ दी, बड़ा स्ट्रेस हो रहा है ! इंजिनीरिंग का फाइनल इयर है, और साथ साथ इंटरव्यूज की तैयारी भी करनी है ! अभी एक कंपनी ने कॉल किया था, पर ग्रुप डिसकसन में मेरे होश उड़ गए ! समझ नहीं आ रहा है कैसे तैयारी करूँ !
वह बोली, अरे परेशान क्यूँ होती हो! तुमने बख्शी सर का नाम नहीं सुना! मेरे बहुत सारे दोस्त वहां गए हैं और काफी इम्प्रूवमेंट हुआ उनकी सॉफ्ट स्किल्स में ! ज्वाइन करके देख लो ! इन सब तैयारिओं में माहौल का बड़ा असर होता है ! एक बार माहौल मिलेगा सब सेटल हो जायेगा !
उम्मीदों के साथ मैं उसी शाम पहुँच गई बख्शी जी की क्लास ! सर से मिलकर बहुत अच्छा लगा ! हर क्लास के अंत में बख्शी जी किसी टॉपिक पर अपने विचार रखते थे !
कभी कभी उन्हें सुन कर लगता, कि कहाँ के तार कहाँ जोड़ देते हैं, कभी उनकी वर्बल स्पीड की मैं कायल हो जाती, तो कभी कभी उनके पोलिटिकल अवेयरनेस की !
एक छोटे से शहर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अंग्रेजी में डॉक्ट्रेट, उसके साथ साथ इनकम टैक्स अफसर भी ! मतलब दिमाग है या कम्प्यूटर !
मेरा भी क्लास में परफॉरमेंस सुधरता जा रहा था ! पहले दिन डर के मारे एक कोने की ऐसी कुर्सी पर जा कर मैं बैठी, जहाँ से लगा मुझे कोई देख नहीं सकता ! पोडियम पर जाने के पहले मेरे हाथ पैर कांपते ! पर जैसे जैसे दिन गुजरे, पिछली सीट से मैं बख्शी जी के बगल वाली सीट पर बैठने लगी ! कोई भी टॉपिक मिलने पर मैं पहली होती, जो पोडियम की तरफ लपकती ! सर के बगल में बैठ कर, मुझे जहाँ कहीं अड़चन आती, अपना सवाल डायरी में लिख कर उनकी टेबल पर रख देती, वह जवाव लिख कर वापस मुझे पकड़ा देते ! उनका सारा लाड़ दुलार भी जाना मर गए की कश्मीरी कहावत से पूरा होता !
उनका बेवाक अंदाज इतने करिश्माई शब्दों से भरा होता कि किसी को थप्पड़ भी मार दें,और सामने वाला थैंक यू भी बोल कर जाये ! फिर चाहे पॉलिटिक्स हो या टेररिज्म का कोई टॉपिक या फिर कश्मीरी पण्डितों का विस्थापन, विषय कोई भी हो, बेझिझक अपना पक्ष रखने का गुर है जो मैं उनसे हू बहू सीख लेना चाहती थी!
आज क्लास में संकीर्ण मानसिकता पर डिबेट चल रहा था और सभी अपना पक्ष रख रहे थे ! अंत में सर अपने तर्कों से टॉपिक की समीक्षा करते ! सर ने कहा हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी है चीज़ों को एक्सेप्ट न करना ! ऐसा नहीं है कि कोई काम करने में हमारी दिलचस्पी नहीं है, जो हम करते हैं, करना पसंद करते हैं, उसी को एक्सेप्ट करने में हमें बड़ी मुश्किल होती है,हम एक्सेप्ट करना ही नहीं चाहते ! मैं मानता हूँ हमारा कल्चर बहुत रिच है, पर कभी कोई अच्छी चीज़ किसी दूसरे से सीखने मिले तो पीछे भी नहीं हटना चाहिए ! समय के साथ जो झुकने और सीखने में विश्वास रखते हैं वही रोशन होते हैं ! तभी किसी बच्चे ने उनसे सवाल किया, अच्छे पेरेंट्स बनने के लिए आप अपने बच्चों से क्या छुपायेंगे !
सर स्पष्टवादी थे ! उन्हने कहा, मैं जो भी करता हूँ, अगर उसे बच्चों से छुपाने की जरुरत पढ़ती है तो मैं समझता हूँ, मैं कुछ गलत कर रहा हूँ ! उदहारण के लिए, मुझे शराब की लत है ! मैं हर दिन बच्चों से छुप कर शराब का सेवन करता हूँ ! अगर मुझे लगता है कि मैं बिलकुल सही हूँ, तो छुप कर पीने की क्या ज़रूरत है! फिर पाश्चात्य संस्कृति अच्छी, कि वो कम से कम एक्सेप्ट करते हैं ! बच्चे मांबाप के साथ साथ बैठ कर शराब पीते हैं ! और अगर आपको लगता है कि ये गलत है, तो जो गलत है, सभी के लिए गलत है ! हमें काम सब करने हैं पर उन्हें स्वीकार करने में हमारे स्वाभिमान आत्मसम्मान को ठेस पहुँच जाती है ! बात लड़कियों की शिक्षा की हो या उनकी स्वतन्त्रता की, उनके जीवन जीने के तरीकों की या फिर किसी स्मोक शॉप पर खड़े हो कर लड़कों के साथ धुआं उड़ाने की या खिलखिलाकर जी खोल कर हँसने की, जिस निष्पक्षता से वह अपने तर्क रखते, उनकी बातें सुन कर मैं कायल हो गई, इतनी कि प्रोफेशनल लाइफ के साथ साथ पर्सनल लाइफ में भी मैंने उन्हें अपना आदर्श बना लिया !
सैशन पूरा होते होते, मैंने जी आर ई और टफेल में अच्छा स्कोर किया ! साथ ही एम् एस के लिए एक फॉरिन यूनिवर्सिटी में मेरा सिलेक्शन हो गया ! जाने के लिए कुछ डेढ़ महीना बचा था! बक्शी जी भी इम्प्रेस हुए बिना न रह पाए ! अब होता यूँ था, कि अगर सर कहीं व्यस्त हैं तो मुझे कहते कि शाम की क्लास तुम्हें लेनी है ! मेरे लिए इस से ज्यादा गर्व की बात होती भी तो क्या ! मैं ख़ुशी ख़ुशी उनका हर काम सँभालने तैयार रहती ! क्लासेज का सफर फैमिली तक पहुँच गया ! कभी बख्शी जी को घर में छोटे बड़े काम होते तो बेझिझक वह मुझ फोने मिला देते !
कुछ दिन बाद बख्शी जी को अपनी बेटी के लिए एक होम ट्यूटर की जरुरत थी ! उन्होंने मुझ से मदद मांगी ! हिदायत के साथ कि,ट्यूटर विश्वशनीय हो ! मैंने पहचान के एक टीचर को उनके घर भेजा ! उनकी क्वालिफिकेशन और रिजल्ट दोनों ही अव्बल! बक्शी जी का फ़ोन आया ! जाना मर गए, ये किसे घर भेज दिया ! किसे?? मैंने कहा, क्या हुआ सर !
अरे सर उनके रिजल्ट्स देखो, एक्सपीरियंस देखो ! होम टूशन तो लेते भी नहीं, वो तो मैंने आपके बारे में बताया बहुत रिक्वेस्ट कि तब जा कर माने !
वो तो सब ठीक है! अरे जेंट्स टीचर को क्यों भेजा ! बेटे के लिए तो सही हैं, पर बेटी के लिए तो कोई फीमेल टीचर ही चाहिए ! मुझे जैसे सांप सूंघ गया ! मेरी जवान ठिठक रही थी! मुझे हैरत हुई, कि बाप बेटी को एक साथ बैठ कर शराब पीने की हिमायत करने वाला इंसान, अपनी बेटी को कोएड स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं हैं और ट्यूशन के लिए एक फीमेल टीचर ही प्रोफाइल करता है !
चंद मिनटों में मुझे कहने और करने का अंतर समझ आया! और यह भी समझ आया, कि भाषण देने और उन बातों को यथार्थ करने में अंतर होता है! किसी की कही बातों से प्रभावित हो कर उसे आदर्श बना लेना भी कहाँ तक सही है !
कुछ समय पहले बख्शी जी ने मुझे एक इडियम याद कराया था, पे ओनली लिप सर्विस! आज उसका उदहारण भी सामने रख दिया ! मेरे जाने का समय नज़दीक था ! इसके बाद मैंने अलग अलग शहरों और देशों में पढ़ाई फिर नौकरी की, पर प्रोफेशनल पर्सनल लाइफ के अंतर को ध्यान में रखते हुए, और किसी से तब तक प्रभावित न होकर जब तक कि ज़मीनी स्तर पर उसके कामों को न देखा हो!

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फिर मिलूँगी एक नई कहानी के साथ !

दीप्ति

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चीड़ और देवदार

चीड़ के जंगलों में मेरी कार सांप सी लहरा रही थी! वह तो जंगलों का ठहराव था, जिसे मैं खाई समझ रही थी ! जिसे मैं भयानक समझ रही थी, वह लाड़ था पहाड़ों का, के सर पर बिठाया था मुझे ! उसे गहरा कहूँ या ऊँचा! एक पहाड़ की चोटी चढ़ती, कि वहीँ से घुमावदार फिर कोई दूसरा रास्ता उतरने को कहता ! नीचे उतरते पहाड़ खत्म होता और सामने दिखते रास्ते के बीच नदी बह रही होती ! मुझे अहसाह हुआ, कि इन पहाड़ों को ये खाइयां ही हैं जो जोड़े रखे हैं और बहती नदी दूरसंचार का काम करती, हर कही अनकही रम रम कर गाती! नदी कबूतर हो जाती, बिना पते संदेशा ठीक उसे देती जिसे देना होता ! प्रेम में भटकते लोग शब्द दर शब्द समझ लेते !
मैं डर गई थी, रास्ता देख, वहाँ या तो आया जा सकता था, या जा सकते थे! मसलन किस तरफ जाना है, शुरुआत में ही तय हो जाता ! उस रास्ते पर पहाड़ जगह जगह खिसक रहा था, दरिया होने ! और आते जाते, कोई दूसरा मुसाफिर मिल भी जाये , तो झूमने, हँस बोल लेने के किसी इत्तेफाक भर जगह न थी, गलियाँ इतनी तंग, रास्ते इतने संकरे ! अब डर कर सफर तय किया तो क्या ही किया! मैंने नज़ारों को दोस्ती का झाँसा दिया और उन्हें जज़्ब करने कि गुस्ताखी कर चली!
चीड़ देवदार के घने जंगलों में पेड़ तो बहुत थे पर सब अनजान! पर इस अनजानेपन में भी एक अभिप्राय था, रास्ता सुझाने का! रास्ते तो अनजान ही होते हैं! और हम उन्हें जान भी लें तो कभी अपने होते हैं क्या ! पर इस रास्ते में एक बात तय थी, कि भटकाव की गुंजाईश नहीं थी ! जो था बस सामने ! ऊपर या नीचे अगर नज़र धोखे से भी चली जाती तो बस सब ख़त्म जैसा डर दम्भ भरने लगता ! सो बस जितना रास्ता सामने दिखता, मैं बिना रुके आगे बढ़ती जाती!
रास्ते तय करते हुए हम न जाने कौन सी ही दूसरी दुनिया की कल्पना उस छोर पर कर लेते हैं ! पर हक़ीक़त ऐसी नहीं होती ! असल में कुछ नहीं बदलता! जो सब रास्ता शुरू होने पर था, रास्ता ख़त्म होते, मंज़िल पर भी वही सब मिलता ! जगहों के नाम बदलते बस, मेले वही के वही होते ! रास्ता ख़त्म हो गया था, पर मुझे अब भी मंज़िल की तलाश थी, न जाने कौन सी कल्पानाओं की मज़िल! इसे कैसे कहूं, एक ऐसी मंज़िल, जिस तक रास्ते जा जा कर ख़त्म हो जाते हैं, या जिस तक रास्ते जाते ही नहीं हैं !
इतने जतनो के बाद तय किए रास्ते के बाअद फिर जो मिला, फिर वही चीड़ देवदार का जंगल ! पर अभी कुछ हुआ, कुछ कैरिस्मैटिक, सामने कहीं दूर से फिर किसी नदी की आवाज़ आ रही थी! दिन रात जैसे बहती सी यह आवाज़, मेरे ज़ेहन का पिछला सब धोती जा रही थी ! सुबह दूर पहाड़ी की चोटी  पर वर्फ पड़ी है, और सुनहरा सूरज उस चोटी को भी सुनहरा कर रहा था, पर यहॉं, तलहटी में, अभी हल्की सी रौशनी है! नलकों का पानी, मेरा शरीर, सब बर्फ !! और जैसे सामने देवदार के जंगलों में मुझे कोई आवाज़ दे रहा हो ! मेरा ह्रदय स्पंदित है, कि जो नाम पुकारा जा रहा है मेरा ही है! मैं इस खिंचाव को और अनदेखा नहीं कर सकती थी ! मैं भी निकल पड़ी बुद्ध होने! और समझ आया, कि सब पीछे छोड़ कर आगे चल देना क्या होता है !
पहाड़ियों से गिरे तानों उलाहनों के पथ्थर इतने नुकीले कि घाटियां बन गयीं, और मैं घाटी बन कर बढ़ती जा रही थी, उस आवाज़ को खोजने! आकाश छूते इतने देवदारों के बीच एक जगह नज़र अटक गई, जिसे जा कर मैंने कहा, आह मेरा देवदार ! सामने बने रेत के टीले पर बैठ मैंने प्यार से उसे घंटों निहारा! न उसने कुछ पूछा न मैंने कुछ बताया ! हम दोनों ख़ामोशी में उस बहती नदी के को सुनते रहे !
मैं ठण्ड में ठिठुरने लगी और मेरी पींठ अकड़ गई ! बद्तमीज़ था, उसे मेरे दर्द का कोई फ़र्क न था! फिर भी वैसे ही तना खड़ा देखता रह मुझे! ऊपर चोटी से गिरे एक बड़े से पत्थर की टेक मैंने लगा ली ! घने जंगलों में सुबह शामों में कोई अंतर नहीं दिखता ! रौशनी जितनी थी, उतनी रही, बस जंगल थोड़ा गहराने लगा ! मुझे पीछे छूटा सब याद आने लगा, और मैं अचानक उसी रास्ते की तरफ बढ़ चली, जहाँ से यहॉं का रुख किया था!
वापस जाने के लिए पलटना ही था, और पलट कर चलना मुँह मोड़ने का पर्याय नहीं हो सकता ! देवदार को यह बात बहुत भले पता थी, तभी उसे कोई शिकवा न था ! उसने हाथ बढ़ा मेरा हाथ झटक लिया और अपने नज़दीक समेट लिया मुझे ! मेरे पास कहने को कुछ न था, बस मैंने भी अपनी बाँहों में उसे भरना चाहा, पर मेरी कलाइयों से बाहर उसका फैलाव था !
देवदार की रगों में दौड़ता पास बहती नदी का पानी था, मुझे अपने हाथों के घेराव में नदी सुनाई देने लगी ! कहा था न मैंने, प्रेम में भटकते लोग नदी के संदेशे शब्द दर शब्द समझ लेते हैं!
उसका माथा गगनस्पर्शी तुंग ! उसकी छाती से मेरा चेहरा ठीक सटा हुआ था ! उसका आभा मंडल इतना दूरस्थ, कि पूरी धरती उसमें समाई हुई ! ऑंखें मूँदते ही सुबह हो गई थी और मेरे जाने का समय ! मैंने न ही उसकी छाल पर अपनी कोई इच्छा उकेरी न ही अपना नाम ! मैं बुद्ध भी न हो पाई ! उन्हीं तंग संकरे रास्तों पर एक बार फिर मैं चल पड़ी, जहाँ से चलना शुरू किया था !
उन घने अनजान जंगलों के बीच से जो मुझे मिला, वह ऐसा उतर गया था मन में, कि हर प्रेमी को मैंने चीड़ कहा और प्रेम को देवदार !

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दीप्ति

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अफ़वाह

कुछ दिन ज़िंदगी में छाप छोड़ कर जाते हैं ! कभी हमारे कुछ किए से, कभी दूसरों के किए कुछ से !
हवाओं में प्रतियोगी परीक्षाओं के रिजल्ट घुल घुल कर उड़ने लगे थे! और मैं हताशा में सारी उम्मीदें छोड़े बैठी थी ! मैं मेडिकल एंट्रेंस की तयारी कर रही थी ! एग्जाम डेट के ठीक दो महीने पहले, जब कोचिंग इंस्टीट्यूट मॉक टेस्ट्स और रिवीज़न की भट्टी में सिक रहे होते हैं, मेरा एक्सीडेंट हो गया स्कूटी से ! शान की सवारी, जान की सवारी बन गई ! रॉंग साइड आ रही बाइक ने जमकर टक्कर मारी थी और मेरा पैर लेग रेस्ट के नीचे दबा हुआ था ! फिर एग्जाम हॉल तक भी मैं प्लास्टर ऑफ़ पेरिस के बने सुरक्षाकवच को लेकर ही चली थी !
मैंने निराशा में खुद को इतना डुबो दिया था कि एग्जाम रिजल्ट चेक करना तक ठीक नहीं समझा ! मेरे रिजल्ट देखने के पहले ही, इंस्टिट्यूट से फ़ोन आने लगे, बधाइयां देने ! निराशा के कड़बे रस में, बधाइयों की मिठास घुल रही थी ! और यह बेतरतीब कॉम्बिनेशन दिमाग में आज तक अंकित है !
मेडिकल कॉलेज ज्वाइन किए कुछ एक महीना ही हुआ था! और अन-ऑफिशियल रेगिंग में मेरा सिक्का चल चुका था ! जनरल अवेयरनेस जैसे टॉपिक्स में मेरा खासा रुझान था, तो यही टॉपिक्स होते थे, जो गपशप में तड़के का काम करते थे ! कोई भी हिस्टोरिक डेट मुझे बड़े ही अच्छे से याद रहती!
पर अब तक मेरा एक राज़ राज़ ही था, कॉलेज में, वो ये, की मैं जिस पर भरोसा कर लेती ऑंखें मूँद कर, और इस आदत ने आगे ज़िन्दगी में कई धक्के भी खिलाये ! पर एक छोटी सी मज़ाक की चिंगारी, कैसे तूल पकड़ लेती है, यह एक वाक़या मुझे बहुत कुछ सिखा कर गया !
कॉलेज से वापस आ कर मैं एक प्रसिद्ध हिंदी गायक के गाने हर रोज़ सुनती ! इन गानों को सुन सुन कर आस पड़ोस और सभी दोस्तों के कान पकने लगे पर मेरे लिए कीर्तन भजन से ले कर पार्टी सांग्स तक, सभी के लिए एक ही विकल्प रहता, लकी वली के गाने ! मेरा फेवरिट सिंगर है, लकी वली !
आज एनाटोमी लेक्चर कैंसिल हो गया ! और हम सभी बैठ कर फ्रेशर्स पार्टी की प्लानिंग कर रहे हैं ! हाल ही में मोबाइल सिम कंपनी आईडिया ने अनलिमिटेड एस एम एस जैसे प्लान्स लॉन्च किए हैं! प्लान का पूरा पैसा वसूलने के एवज़ में, मेरे एक दोस्त ने, एक मेसेज भेजा ! वह प्रैंक जैसे शब्द सीख रहा था ! मैंने मेसेज में पढ़ा, तुम्हारा फेवरेट सिंगर लकी नहीं रहा ! एक बार को लगा, मज़ाक तो नहीं कर रहा है, पर फिर दूसरे ही पल लगा, ऐसा मज़ाक क्यों करेगा ! मैंने भारी मन यह बात स्वीकार ली !
तब ख़बरों का जरिया या तो न्यूज़ बुलेटिन थे या फिर सुबह आने वाला न्यूज़ पेपर! इंटरनेट जैसी फैसिलिटी साइबर कैफेज़ में ही उपलब्ध थी ! दुखी मन से मैंने लॉबी में एंटर किया और यह खबर सभी को दी ! चूकि मेरी किसी बात को कभी हलके में नहीं लिया जाता था, सभी ने अफ़सोस जाताना शुरू कर दिया ! सभी हैरान थे ! अरे अचानक यह सब कैसे हुआ ! और धीरे धीरे खबर पूरे कॉलेज में फ़ैल गयी! दुःख कि बात यह थी, कि इसी सिंगर को फ्रेशर्स पार्टी में एज गेस्ट बुलाया गया था !
उसी समय मेरी क्लास का सबसे अमीर लड़का लॉबी में दाखिल हुआ ! ब्लैकबेरी पूरे कॉलेज में उसके पास ही हुआ करता था ! यूँ फैली शांति देख कर वह कुछ हिचकिचाते हुए बोला, अरे सब इतने शांत कैसे बैठे हैं? ऐसा क्या सीरियस डिसकशन चल रहा है ! किसी ने बताया माज़रा क्या है! सरस ने तुरंत ब्लैकबेरी निकाला और बोला रुको में पोस्टमार्टम करता हूँ खबर का ! आज कल बहुत अफवाहें भी फ़ैल जाती हैं! फोन से निगाहें उठा कर वह ज़ोर से मेरी तरफ हँसा और बोला मतलब किसी ने तुम्हें बनाया और तुमने हम सबको बना दिया ! सभी ठहाके लगा कर हंसने लगे !!
मुझे समझ आया, सामने आया या परोसा गया सब कुछ असलियत नहीं है ! हालांकि बात बहुत छोटी सी थी, पर छोटी बातें ही ज़िन्दगी के सबसे बड़े सबक देतीं हैं ! मैंने सीखा कि तुरंत प्रतिक्रिया देने का नतीज़ा क्या हो सकता है !
खासकर स्प्रैडेड मेसेजेस, उनकी सच्चाई जाने बिना आगे किसी को भी कुछ कहना ठीक नहीं है !! मुझे उड़ती अफवाहों से खासी दिक्कत थी, और आगे किसी भी अफवाह का एपिसेंटर में नहीं बनना चाहती थी ! मैंने ठाना, मेरे हर कहे के लिए मैं ही जबाबदेह हूँ!
आगे आने वाले सालों में मैंने देखा, सोशल मीडिया ऐसे ही अफवाहों भरे मेसेजेस से भरा पड़ा है, और कितनी घटनाएं किसी गलत खबर या अफ़वाह के उड़ने का नतीज़ा हैं !

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दीप्ति

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आजमाइशें

मुझे ज़िन्दगी में मिला सब कुछ अच्छा लगता, सिवाय अपने पैरों के ! उसे जब प्यार आता तो हथेलियों में मेरे पैर किसी फूल के जैसे एहतियात से रख कर चूम लेता ! और इस बात पर मैं ऐसे खीझती, कि कोई बनावटी हो सकता है पर इतना ! प्यार जैसे मसले मेरी समझ के बाहर थे ! और मैं मेरी समझ से बहुत प्रैक्टिकल थी !
बढ़ती करीबियां प्रेम को प्रेम रहने ही नहीं देतीं ! ये ले कर आती हैं बहुत से ऑब्लिगेशन्स, जो मुझे कभी पसंद ही नहीं थे!
हर कोई अपनी ही तरह का अच्छा और सच्चा है ! हर गलत को साबित करना पड़ता है ! और इस सच्चाई की परख में तो सालों क्या जिंदगी भी कम है ! क्या टिकता है एक जगह ! जिस धरती को अचल मान कर हम उसकी कसमें खा बैठते हैं, वह भी टिकी है क्या एक जगह, घूम रही है गोल गोल ! फिर यह तो मन है ! मन पलटते देर नहीं लगती ! फिर क्या भरोसा, किसने देखें हैं अंतिम पड़ाव ! यही सही गलत साबित करने के लिए सबूत जुटाना, मेरे ज़ेहन को डरा देता और मैं हँसते हुए मान लेती, धरती एक ही जगह टिकी है, मन भी ऐसे ही अटका हुआ है!
वह रह रह कर आजमाइशों के पाँसे फेंकता ! कहता, जब दुनिया कम पड़े सवाल जबाब करने में, तो चली आना, मैं तब भी यहीं मिलूँगा, यहीं इसी जगह! न मिलूँ तो सज़ा तुम मुक़र्रर करना !
मेरी हंसी छूट पड़ती! जानेमन, ये कोई कोर्ट केस चल रहा है क्या? और मैं किस अदालत की जज, जो सजाएं भी देने लगी ! सबूत जुटा कर कुछ अपना बताना हो तो वह अपना ही क्या !
गहरी साँस भर उसने कहा, और अगर कुछ गुम गया हो, और कोई और उसे अपना बता रहा हो तो ?

मैं चुप हो जाती और इस चुप्पी को ही हम कभी एडजस्टमेंट कह देते, कभी प्यार, कभी मज़बूरी तो कभी नसीब !

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दीप्ति



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बावेजा जी की बारात

दस बाई दस के चौकोर केबिन के चारों कोनों पर चार डेस्कटॉप रखे हुए हैं ! इन्हीं कोनों में बैठे हम चारों चार किस्म की प्रजाति, सबकी सोच,काम करने का ढंग एकदम अलग, पर बीतते साल के साथ हमारी जड़ें आस पास के कोनों तक पहुँच ही जातीं!
बावेजा जी यूँ तो बड़े ही काइयाँ किस्म के इंसान थे, पर आप उस इन्सान को कैसे कभी जज कर सकते हैं , जिसने मुश्किल समय में आपकी मदद की हो ! हमारी टीम को नया प्रोजेक्ट असाइन किया गया है, अभी एक खास ट्रेनिंग चल रही है कि मैं अचानक बीमार पड़ जाती हूँ ! दस दिन के मेडिकल के बाद वापस जब ऑन डेस्क आती हूँ तो जैसे यहाँ दुनिया बदल गई ! अफरातफरी का माहौल, एक्यूरेसी और प्रोजेक्ट, ऑन टाइम सबमिशन का प्रेशर! किसी को हालचाल पूछने की भी फुर्सत नहीं है ! मेरे डेस्कटॉप परआई बी एम् मेनफ़्रेम खुला हुआ है और मेसेंजर पर ऑन शोर लीड का मैसेज !
वेलकम बैक रूही ! होप यू आर डूइंग ग्रेट नाउ! और उसके साथ अटैच एक लम्बी सी डेटा एक्सेल फाइल! मैंने मन ही मन खुद को समझा लिया है, काम तो होने से रहा, लगता है, रिजाइन ही डालना पढ़ेगा ! अभी नोट्स उठा कर पढ़ने का भी टाइम नहीं है! परफॉरमेंस तो पुअर ही होनी है!
सर पकड़े मुझे बावेजा जी ने देख लिया और समझ गए मेरी परशानी ! रूही अरे काहे सर पकड़ कर बैठी हो! पड़ोसी किस दिन काम आएंगे ! तुरंत कागज पेन ला कर, बेसिक्स समझा दिए, आज का काम चल जायेगा ! कल सुबह से थोड़ा जल्दी आ जाया करो, मैं ट्रेनिंग मटीरियल दे दूँगा, सब समझ आ जायेगा फिर ! बावेजा जी ने आज नौकरी बचा ली मेरी ! और मेरी ज़िन्दगी में अपने लिए एक खास जगह भी बना ली! अब बावेजा जी कलीग कम किसी फैमिली मेंबर जैसे ही हैं, जिनसे सुख दुःख शेयर कर लिया जाता है! लंच ब्रेक हो या टी ब्रेक, आये गए बावेजा जी साथ ही रहते हैं !
इसी बीच शादियों का दौर शुरू हुआ! बावेजा जी लव मैरिज करने जा रहे हैं ! बड़ी मुश्किल हुई, लड़की वाले राज़ी न थे! बावेजा जी के कन्धों पर घर का बोझ था, और माली हालत कुछ खस्ता! आठ के परिवार मेंअकेले कमाने वाले!
ऑफिस में हम गिने चुने पांच लोगों को शादी का न्यौता मिला ! और धमकी के साथ, कि न आये तो बुराई हो जानी है ! प्रोजेक्ट से ज्यादा प्रेशर अब उनकी शादी का था! शादी को बस एक महीना बाकी है, और रिपोर्ट सब्मिशन के बाद का ज्यादातर समय हर महंगी चीज़ का विकल्प ढूंढने में निकलता !
शादी के लिए किसने उम्मीदें नहीं बाँधी होतीं हैं! बावेजा जी का हाथ तंग हुआ तो क्या, सपने आसमान भर फैले थे ! फिर चाहे राजशाही बघ्घी हो या घूमता हुआ स्टेज! ठाठ वाली शेरवानी से ले कर पगड़ी तक सब कुछ प्लान्ड एंड बजटेड!!
हम बाराती बनकर वेन्यू पर पहुंचे! बवेजा जी हाथ हिला कर हमें बघ्घी के पास आने का इशारा किया! बघ्घी पर बावेजा जी समेत चार पहले से ही सवार हैं, ऊपर से हम भी ! भारी भरकम साड़ी पहिने मैंने पहला कदम सीढ़ी पर रखा ही था, कि बघ्घी कब्जों से चरमराने लगी! मैंने अपने कदम पीछे खींच लिए ! तभी पीछे पटाखेबाजी शुरू ! बारात की धूमधाम में कोई कमी नहीं, बावेजा जी ने खास अग्गासिया और नौरंगे मुहैया कराये थे! हज़ारी की लड़ी चलते ही घोड़ा हिनहिनाने लगा ! बावेजा जी ने साथ वाले के कान में कहा, अरे बंद कराओ ये, पर बात आगे पहुँचते पहुंचे और चलाओ हो गई ! फिर हज़ारी और नौरंगे और घोड़ा बघिघि में बैठे बावेजा जी को ले कर भागने लगा ! देखते देखते माहौल बहारो फूल बरसाओ से दौड़ा घोड़ा दौड़ा घोड़ा हो गया!
पर यहां ही बावेजा जी की परीक्षा ख़त्म न हुई ! ले दे कर हम अग्रसेन धर्मशाला पहुंचे! बावेजा जी की बघ्घी का क्या हुआ, मुझे नहीं पता ,मैं बस भगवान का शुकर मना रही थी, की बघ्घी पर न चढ़ी! थोड़ी देर बाद बावेजा जी को सही सलामत ले आया गया!
फूलों से सजी गोल घूमने वाली स्टेज पर बावेजा जी अपनी प्रियतमा का इंतज़ार कर रहे हैं ! ढाई सौ ग्राम की प्रियतमा दस किलो का लहँगा पहिने बस दस सीढ़ी की दूरी पर हैं ! सीढियाँ इतनी संकरी के बस एक ही ऊपर नीचे आ जा सकता है ! सहेलियां जैसे दुल्हन को यह कहकर छोर देतीं हैं, जा बहिन इस दुनिया में हर किसी को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पढ़ती है! हम कब तक साथ देंगे !
स्टेज इतनी ऊपर है की ऑपरेटर को दिखाई नहीं दे रहा है, दुल्हन आ गई या नहीं ! दुल्हन बस कदम रखने वाली ही थी कि बवेजा जी का इशारा गलत समय पर हो गया ! स्टेज गोल गोल घूमने लगी ! दुल्हन को कैसे बवेजा जी ने बाहों में भर कर संभाला ! हम सब ने ऑपरेटर को आवाज़ दी भैया बंद करो इसे घुमाना ! ऑपरेटर भी बजटेड नौसिखिया ! वह रोकने के एवज़ में रफ़्तार बढ़ाता चला जा रहा है !
बवेजा जी विद फैमिली दस मिनिट तक चकरी बने रहे ! फाइनली स्टेज का पावर कनेक्शन काटा और दोनों को रेस्क्यू किया गया ! लड़की वालों की भौहें चढ़ी हुई हैं !
वहाँ खाना पहले देर से परोसा गया और उसके बाद खाना काम मेहमान ज्यादा! मटर पनीर ढूंढे न मिला और दाल फ्राई मिक्स वेज पर लूटमार मच गई ! आधे रिश्तेदार भूखे पेट गालियां देते हुए चले गए !
वैसे तो किसी भी शादी में मुँह फुलाये दो चार रिश्तेदार दस्तूर करने आते ही हैं पर यहां उनकी शिकायतें जायज़ थीं ! हज़ार रूपए का लिफाफा व्यवहार और भूखे पेट जा रहे हैं ! खासकर औरतें तनी जा रहीं थीं, अब घर जा कर खाना बनाओ !
पर ले दे कर बावेजा जी एक से दो हुए ! और तीन की तैयारी में बजटेड हनी मून के लिए रवाना हो गए !

पूरे बीस दिन बाद वापस जब बावेजा जी ने ज्वाइन किया तो अब क़र्ज़ चुकाने की बारी मेरी थी ! मैंने बैठ कर उन्हें हाल में हुई ट्रेनिंग के अपडेट और नए प्रोजेक्ट का काम सिखाया! शाम को रिपोर्ट सब्मिशन के बाद का टिया टाइम, जब सब सांस लेते हैं चैन की, सभी बावेजा जी को छेड़ रहे हैं ! बावेजा जी हमें थैंक्स कहते हैं शादी में आने के लिए ! मैंने कहा चलो आपकी शादी अच्छे से निपट गई, बड़ी ख़ुशी की बात है ! बावेजा जी छोटे से टिफ़िन में रखा नाश्ता आगे बढ़ाते हुएकहते हैं, वैसे एक बात है रूही जी, जब से शादी हुई है, समाज में हमारी इज़्ज़त बढ़ गई है !

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दीप्ति

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सहूलियत का भूत


सुधा मेरी बचपन की सहेली ! पकड़म पकड़ाई खेलते हुए कहाँ ही मैंने कभी सोचा होगा कि इस हँसी का ग्राफ जिस पिच से ऊपर जाता है, उतनी ही रफ़्तार से लुढ़केगा भी !
अंतिम समय उसके पीछे भागती उसकी सोलह साल की बेटी और ज़मीन पर लिटाते हुए उसकी कमर तक लम्बी लटकती चोटी, ओझल नहीं होती मेरी आँखों से ! ऐसा होता है जबआप डीपली इन्वॉल्व हों किसी चीज़ में, यह आपके सबकॉन्सियस ब्रेन में जगह बना लेता है! और अब भी चाहते हुए न चाहते हुए मैं उसे याद कर बैठती हूँ ! मौत जैसे पल भर का खेल है ! वो बस एक पल होता है जहाँ से चीज़ें पलटा खाने लगती हैं ! कभी कभी लगता है, काश हम टाइम मशीन में ट्रेवल कर पाते, ! काश जा कर हम उस समय को बदल सकते ! समय ऐसे कितने काश हमें दे देता है, और साथ में दे देता है कल्पनाएं!
सुधा को ब्लड कैंसर हुआ था ! पर थकान बुखार कौन दर्द, कौन ही ध्यान देता है इस सब पर! और जिस दिन दर्द बढ़ने लगा, तब ध्यान देने का कोई खासा फायदा न हुआ ! डॉक्टर ने एक्सपायरी डेट चिपका कर वापस भेजा था ! फिर हुआ वही जो होना था ! असमय मृत्यु! पता नहीं हम असमय किसे कहते हैं ! मौत तो मौत ही है ! किसी भी समय हो, उतना ही दर्द देती है !

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आधी रात राजबहादुर दौड़ता हुआ पुलिस स्टेशन पहुंचा ! दरोगा जी ! मेरी बेटी आज सुबह की बस पकड़कर कॉलेज गई थी ! बीए सेकंड इयर में हैं! हर रोज़ ही कॉलेज जाती है ! पर आज घर वापस नहीं पहुंची !
अच्छा कोई फोटू है उसकी! राजबहादुर ने फर्स्ट इयर का परीक्षा प्रवेश पत्र आगे बढ़ाया जिसके कोने में सीमा का फोटो चिपका हुआ है ! दरोगा जी फोटो को थोड़ा आधा तिरछा करके देखते हैं! पान की पीक बगल में थूकते हुए, कोई सहेली वहेली के साथ तो नहीं है! कोई है साथ वाला! पता किया कहीं! कुछ जानकारी हो कोई चक्कर वक्कर !
साब ऐसी बातें करते हैं ! पिछले डेढ़ साल से रोज़ आ जा रही है! कभी ऐसा नहीं हुआ कि बिना बताये कहीं गई हो! अभी फ़ोन लगाया, फ़ोन भी स्विच ऑफ है!
ठीक है ! अभी जाओ, मैं आस पास के सभी थानों में अलर्ट भिजवा देता हूँ ! जैसे ही कुछ पता चलता है, मैं बुलाता हूँ तुम्हें फिर !
अगली सुबह सीमा ट्रेस हो जाती है! दिल्ली के सराय रोहिल्ला स्टेशन पर मिलती है ! पूछताछ में पता चलता है, जिस लड़के के साथ भाग कर आई थी, उसने लूटपाट की और मार पीट कर इस स्टेशन पर छोड़ गया !
गाँव विरादरी में वापस जाना एक सवाल है ! ऐसी ख़बरें हवा की तरह उड़तीं हैं ! सीमा के घर पहुँचने से पहले आधा गाँव वहां जमा है !
बस से उतारते ही सीमा अपने बालों को खोल कर गोल गोल सर घुमाने लगती है ! दो लोग सीमा के हाथ पकड़ कर ला रहे हैं ! सीमा चिल्ला रही है ! मैं सबको भगा ले जोगी यहाँ से! तुम सब ने मारा है मुझे ! मुझे कोई डाक्टर न मिला यहाँ! मुझे पूजा चाहिए ! दो बकरे कटवाओ यहाँ ! सीमा किसी के काबू में आने का नाम न ले !
माँ भागकर ओझा को बुला कर लाई ! ओझा तंत्र कर रहा है ! वह सवाल करता है ! बता कौन है तू ?? बता नहीं तो बालों से पकड़ कर यहीं बांध दूंगा तुझे ! वह अपना नाम बताती है ! सुधा!!
आस पास खड़े सभी लोग समझ गए हैं, सुधा का भूत चढ़ा था सीमा के सर ! जो भगा ले गया था उसे !

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कल्ले ने बचपन से तंगी और बदहाली देखी थी ! बचपन में ही बाप का साया सर से छिन गया ! मामा उसे अपने साथ शहर ले गए! इन शहरों में मंजिलें हैं ,पर भटकाव उस से भी ज्यादा ! न जाने खेती का क्या चस्का चढ़ा, गाँव वापस जाने की जिद ठान बैठा! पहुँचते ही घर में चोरी चकारी से शुरुआत की, कई बार पकड़ा गया पर बिन बाप की औलाद का ठप्पा काम आता रहा! ताऊ ने ज़मीन का आधा हिस्सा कल्ले के नाम कर दिया ! लोग यह न कहें क सब हड़प करके बैठ गया !
कल्ले खेत में अफीम की खेती करने लगा! माँ जानती थी, पर बहिनों की शादी का झाँसा सुन माँ सब अनदेखा कर देती ! सबका पहनावा बदल गया, घर का नक्शा भी ! ताऊ को तो पारस मणि मिल गई थी ! जमीनें तो पुश्तों से थीं, पर इतना पैसा कभी सपना ही लगता !
कल्ले चरस के नशे में रोज़ धुत रहता ! किसी के भी घर के सामने रोज़ उत्पात मचाता, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करता, और चोरी नया शौक बन गया उसका ! घर वालों को शक है, कोई बुरा साया है उस पर !
शाम मंदिर में बैठक लगी है! कल्ले छलांग मरता हुआ भाग रहा है! कोढ़ा ले कर सामने कोई सवाल करता है, बता नाम बता अपना !! औरत की आवाज़ में वह बोलता है !! सुधा !!
गाँव में बड़ा सख्त एस पी आया है! मनचले आवारा लड़कों को सीधे अंदर करता है और नशेड़ी तो उसके निशाने पर हैं ! नारकोटिक्स टीम संदिग्ध जगहों पर छापा मार रही है! कल्ले को हिरासत में ले लिया गया है ! और आगे छह महीने केलिए बाल सुधार गृह भेज दिया गया है!

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सुनीता अपने चार बच्चों के साथ बस घर में बनी रहे, इसके लिए हर रोज़ न जाने क्या क्या सहती है ! मज़बूरी है, सब सुनते हुए यहीं बने रहना, पति की भी नौकरी नहीं है ! हर दिन के उलाहने, माँ बाप को पड़ती गालियां लड़की को कुछ न दिया ! कितनी बार मन मनाही कर देता, अब नहीं सुना जाता यह सब पर जाए तो कहाँ? हर दिन उसके साथ कुछ गलत होता ! पर आज उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया ! ज़ोर ज़ोर से हंसकर खुद को आग लगाने की बात कर रही है!
कमरे का दरवाज़ा तोड़ दिया जाता है! उसे बहार लाते हुए, पड़ोस में रहने वाली काकी को उस पर किसी बुरी आत्मा का साया दिखाई देता है ! घर के आंगन में सुनीता सिन्दूर अपने सर में उड़ेल रही है ! सुनीता की सास आ कर बताती है, सुधा लग गई उसे ! कहती है आज उसे ले कर जाएगी!

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सुधा की बेटी को उड़ते उड़ते सारी खबरें कानों में पड़ती हैं ! अब उम्र इतनी है उसकी, कि दुनियादारी कुछ कुछ समझ आने लगी है! कुछ बच्चों में बहुत ठहराव होता है! और मन बहुत गहरा! आज उसने मुझ से एक सवाल पूछ लिया ! मौसी, मरे हुए का भूत दुनिया को दिख जाता है ! सिवाय उसके, जिसने उसे असल में खोया है !

दीप्ति

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मेहनताना

बचपन से बुढ़ापा आ गया ! बब्बन दूसरों के खेतों में हल जोतता रहा! हर साल सोचता, कहीं बटिया पर फसल मिल जाये तो साल भर के खाने का इंतज़ाम हो जाये! पर जमींदारों को जो बैल हर दिन की रोटियों के एवज़ में मिले, मनचाहे समय पर तो क्यों घर में खूंटे से बांधें! हर दिन खाने की पसरी लाचारी के सामने वह बटिया के सपने छोड़ देता! बस आज पेट भरने की लालसा बस उसे थकने न देती, चढ़े सूरज में हल हांकने से !
बब्बन चार भाइयों में मंझला था ! तीन भाई थोड़ा पढ़ लिख गए और शहर की तरफ चल दिए ! कहते हैं बदली हवा पानी, इंसान का मन भी बदल देता है! फिर समझ से परे होता है, कि शहर ने हमें सोखा या हमने शहर को !
किसे नहीं पता थी, बब्बन की माली हालत! कभी यूँ ही ऊपरी मन से भी बात की और बब्बन ने कभी मदद की गुहार लगा दी तो!! सर पर बोझा रखना मज़बूरी ही हो सकती है, किसी का चुनाव नहीं! अब बब्बन से बात करके कोई क्यों अपने सर पर बोझा ढोए, सभी भाइयों के दिमाग में बब्बन आया गया हो गया !

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सुना है गाँव से हाईवे निकलने वाला है ! बब्बन की झोपड़ी बस्ती से दूर बनी हुई है ! अछूत जात का ठहरा! शहर में होता होगा, रोज़गार बिना जात धरम के! यहां तो बब्बन अगर पंडित जी को उनके चबूतरे पर बैठा देख लेता, तो अपनी पनैयाँ (खास किस्म की चमड़े की बनी जूती) भी सर पर रख लेता ! और नंगे पैर नज़रें झुका कर गली पार करता ! वो बात और थी, कि बब्बन के नंगे पैर देख पंडित का अहम् तृप्त होता, और इसी अहम् में वह अपने दिमाग का नंगापन भुला देता !
आज कुछ सरकारी अफसर आये हैं, बब्बन से बात करने! उसे कागजी आदेश मिला है, झोपड़ी खाली करने का ! हाईवे में उसकी झोपड़ी भी जा रही है ! यूँ तो उस टपरे में ऐसा कुछ भी नहीं था उखाड़ फेंकने लायक, पर दलित की राजनीती न हो पड़े! हाड़ों से लिपटी जली खाल में हाथ जोड़े बब्बन अफ़सर से कहता है, मालिक, फिर गुज़र बसर कैसे हो? अफसर ने उम्मीद दिलाई, तुम परेशान न हो, सरकार सेवा के लिए ही तो है! तुम्हारी झोपड़ी के एवज़ में या तो तुम पैसा ले सकते हो, या फिर किसानी की ज़मीन!
बब्बन के सूखे चेहरे पर उम्मीद जाग गई ! पैसा तो हाथ का मैल साब ! कौन से पेड़ उगने हैं उसके! और बिना आखर जाने रोजगार करना कहाँ हमें आए ! मालिक बड़ी मेहरबानी, जो बस ज़मीन के बदले ज़मीन ही मिल जाती ! सौदा तय हुआ !

दूसरों के खेत जोतते कभी एक पल का जी न चुराया, न कभी किसी से एक पैसे की बेईमानी! बब्बन की किस्मत ही तो खुली थी! अब अपना खेत होगा! खूब मेहनत करेगा! दो फसलें निकालेगा रबी और खरीफ की ! साल भर के खाने के लिए तो भगवान खूब देगा !
चल बब्बन अब तो कोई शिकायत नहीं है! जा अब तो तू जमींदार हुआ ! और देख चार सगोना के पेड़ इस ज़मीन में तुझे फले फूले मिले! अब मरी से मरी हालत में भी अगर हिसाब लगा ले तो कम से कम एक लाख के तो ठहरेंगे! कुल दस बीघा ज़मीन मिली है! बब्बन अफ़सर के पैरों में गिरा हुआ है! कितना शुक्रगुज़ार !!
ज़मीन मिलते ही बब्बन ने एक कोने में पुरखों का चबूतरा बनवाया ! और फिर मेढ़ बांधनी शुरू की ! अफ़सर के गाँव में रहते हुए ही मेढ़ ढल जाये, तो ठीक रहे, आगे का कोई चोचला नहीं !

बब्बन के मन से उदासी चटखी और सपनों की कोपलें फुट पड़ी! ज़िन्दगी इसी माटी से शुरू और इसी में मिलना है ! ज़मीन उपजाऊ नहीं थी! बब्बन ने दिन रात मेहनत करके, खुदाई की, आटक रोड़े सब निकाले! कुदाल फावड़ा चलते हुए, जब बब्बन का मन थकता, बब्बन सगौना के पेड़ देख कर मुस्कुरा उठता! इस दस बीघा से तो दिन कि भूख मिटती, पर सगौना के पेड़ों को देख वह सम्पन्नता के सिक्के खनकाने लगता ! बब्बन बच्चों सी देखरेख करता उनकी, कि जिस दिन हाथ पैर चलना बंद होंगे, यही सहारा देंगे !

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सरकार बदल गयी है ! आज गाँव में मुनादी हुई है! आठ साल पहले जो जमीनों के पट्टे और मुआवज़े दिए गए थे, उनमें हेरफेर की गई थी, बड़ा घोटाला हुआ है! सरकार दी गयी जमीनें कुर्क कर रही है! अपने माथे को हथेलियों से ढांप कर मायूस बैठा बब्बन हाँफ रहा है ! आठ साल से उस ज़मीन की देखरेख कर उसे उपजाऊ बनाया! सालों का पाप कटा था, हर शाम चार रोटियां चैन से खाने मिलती थीं !न जाने ये गिरह कैसे पलट गए फिर ! यह उसका हक़ है ! अपना बसेरा उस हाईवे में दिया था, फिर अफ़सर ने खुद ही कागज़ाद दिए थे ! अब तो पुरखे भी बसे हैं उस ज़मीन पैर ! नहीं नहीं ! जिस ज़मीन को मैंने खून सींच कर उपजाऊ बनाया, उसे मैं यूँ ही कुर्क नहीं होने दूंगा !
पेट भरा हो तो हक़ की लड़ाई कुछ आसान लगने लगती है! दो वक़्त की रोटी ने बब्बन को कुछ हौसला दे दिया था !
बब्बन भागता हुआ बकील साब के दफ़्तर पहुंचा ! दरख्वास्त की, साब मालिक, मैंने सुना है, तुमने किसी का हक़ मरने नहीं दिया ! मेरी रोटी छीन रहे हैं साब ! बड़ी कृपा, बचा लो साब !
चिंता मत करो ! सब ठीक होगा ! पर एक बात साफ बता दूँ ! मेरा मेहनताना मेरा !! उसमें कोई लोच न हो !
साब हम गरीब ! कहाँ से मेहनताना लायें ?
अरे बिन मेहनताना कैसी कचहरी!
साब कुछ रास्ता सुझाओ!!
बकील साब ने बीड़ी सुलगाई, बालों में उंगलयों को गोल घुमा कर कहा, ठीक है फिर सगौना कटवा कर भेज दो, घर का फर्नीचर बन जायेगा !
बब्बन ने मन ही मन सोचा, ज़मीन रही तो हर दिन पेट भरता रहेगा ! बुढ़ापा किसने देखा !

ठीक है मालिक कहकर वह खेत की तरफ चल पड़ा!

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दीप्ति

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जनरल बोगी

गर्मियों की सन्नाटेदार रात है ! मैं छत के कोने में रखी एक कुर्सी पर पैरों को मोड़कर हाथों से जकड़े हुए बैठी हूँ ! और कसाव इतना कि मन किसी के साथ होने जैसा कुछ महसूसता रहे ! जहां तक नज़र दौड़ती,एक के बाद दूसरी इमारतें लेगोस ब्लॉक्स जैसी सलीके से जमी दिखतीं ! नीचे सड़क सुनसान सी और हवा के साथ सूखे पत्तों के उड़ने की हल्की हल्की आवाज़ आ रही है! नम तपती हवाएँ मेरे माथे से टपकते पसीने को छू कर मेरी अंदरूनी परत तक मुझे ठंडा कर रही हैं ! हवा में लहराती लट को मैं हौले से सहलाकर कान के पीछे दबा देती हूँ !पारा चालीस पार कर अधेड़ होने लगा और बढ़ती संख्याओं के जोड़ घटान में वह कुछ गुज़रे वक़्त की हासिल लगाने लगा है !

उन दिनों की बात है,जब हम जैसे न जाने कितने बच्चे, मन में सपने लिए मुँह उठाए कहीं भी भेड़ बकरी हो जाते !दिमाग में किताबों का लिखा कम, परिवार समाज की बंधी उम्मीदें ज्यादा जगह घेर कर रखती थीं ! उस समय बच्चे पर डाला गया दवाव समानुपाती होता था सफलता का ! चारों तरफ से बने प्रेशर कुकर में बच्चा सीटी लगाता रह जाता पर सुना उसे ही जाता जो इस अंधी दौड़ में निर्धारित लक्ष्य झपट लेता !
मैं रहती ग्वालियर में और डॉक्टर बनने के सपने रहते मेरी आँखों में ! सी पी एम टी की परीक्षा थी उस दिन और मेरा सेंटर पड़ा था झाँसी ! इस समय परीक्षाएं हफ्ते हफ्ते के अंतराल पर रहतीं ! बड़े सपने देखने के लायक हूँ, यह सिद्ध करने के लिए कुछ बड़प्पन भी दिखाना होता ! सी पी एम टी की परीक्षा के लिए मैंने पापा को कहा, आप कब तक भागते रहेंगे मेरे साथ ! यह परीक्षा मैं खुद ही दे आऊंगी ! आप परेशान न हों ! झाँसी ही तो जाना है ! कुल दो घंटे का सफर है! पेपर दे कर आ जाऊंगी, फिर साथ के कुछ दोस्तों का सेंटर भी झाँसी ही पड़ा है ! मेरी सहेली रानू, उसका मेरा तो कॉलेज भी एक ही है ! आप बेफिक्र रहो ! मेरी ज़िद ने पापा की समझाइश को जीत लिया, पर उनकी फिक्र वहीँ रुकी रही!
आज फिजिक्स का मॉक टैस्ट था और वहां उन सभी से मुलाकात हो गई जिनका परीक्षा केंद्र झाँसी था ! और तय हुआ चार दिन बाद सभी रेलवे स्टेशन पर मिलेंगे सुबह साढ़े पांच बजे ! यह मेरी पहली रेल यात्रा नहीं थी ! इसके पहले भी कइयों बार मैं अलग अलग शहरों में जा चुकी थी ! और घर से कोचिंग सेंटर तक रोज तय करने वाले रास्ते ने बहुत कुछ सिखा दिया था, जिसमें ईवटीसिंग, स्टॉकिंग और सेल्फ डिफेन्स जैसे सबक और गुर बड़े अच्छे से सीख चुकी थी मैं ! मैं इस रास्ते को मॉक वे कहती, जैसे निर्णायक परीक्षा के पहले एक नमूना होता था मॉक टैस्ट ! ऐसे ही दूर दराज़ जाने के पहले यह दस मिनट का पैदल रास्ता एक छोटा सा नमूना था, दुनियादारी का ! और यह बात मैं बहुत अच्छे से जान चुकी थी, कि बस पढ़ाई कर लेना काफी नहीं है! हर हाल में पहले आपका जीवित बने रहना आपका सर्वाइवल सबसे ज्यादा जरुरी है, वह भी बिना डर के ! मैंने परेशानियों से नज़रें मिलाना सीख लिया था!
दोस्तों के साथ हँसते मुस्कुराते दो घंटे का सफर पता न चला! स्टेशन पहुँच कर हम सब अपने अपने कॉलेज के लिए निकल पड़े! सुबह सुबह हम किस्मत को सराह रहे थे, कि स्टेशन से ऑटो मिल गया ! कैब जैसी कोई चीज़ चलन में नहीं थी ! ऑटो राईड भी लक्ज़री थी ! सेंटर पहुँच कर हमने राहत की साँस ली!
पेपर ख़त्म होने पर सभी ने वापस स्टेशन पर एक तय जगह मिलने का प्लान बनाया! पर कुछ के एग्जाम सेंटर्स शहर से इतने दूर थे कि वापस स्टेशन आने के लिए कोई साधन न मिले ! रेलवे स्टेशन पर लोग चीटियों की तरह बिलबिला रहे थे ! आज पहली बार जनसंख्या उन्मूलन जैसी ठोस योजनाओं का औचित्य समझ आया !
पहले हम बाकी के सभी लोगों का एंट्रेंस गेट पर इंतज़ार करते रहे ! पर देखा ट्रेन आने में बस दस मिनट बचे हैं, तो हम प्लेटफार्म की तरफ चल दिए ! बाहर डिस्प्ले बोर्ड पर ट्रेन सही समय पर दिख रही थी और प्लेटफार्म नंबर ४ पर आने वाली थी ! भीड़ को चीरते हुए हम चार नंबर प्लेटफार्म की तरफ भागे ! भागते हुए हाँफी भरने लगी, हमने बस कदम थाम कर साँस ही ली थी, कि कानो में पड़ी आवाज़ पर भरोसा नहीं हुआ ! हम फिर एक बार अनाउंसमेंट सुनने का प्रयास करते, लगा भेड़ों के जत्थे में किसी ने पटाखा फोड़ दिया हो! और जो भागमभाग शुरू हुई ! मैंने बगल में सामान उठाते भाई से पूछा, ट्रेन का प्लेटफार्म बदल दिया गया है क्या? हाँ सुनकर हम भी भीड़ में शरीक हो फिर भागे ! प्लेटफार्म नंबर सात पर ! बस यहीं सामने दिखने वाला प्लेटफार्म, सीढियाँ चढ़ने उतरने और फुटओवर ब्रिज पार करने में यूँ लगा चलते हुए हम किसी दूसरे शहर ही पहुँच जायेंगे ! हम ब्रिज से सीढ़ियां उतर ही रहे थे ट्रेन आ पहुंची ! यह सुपरफास्ट ट्रेन है और झाँसी जंक्शन पर बस दो मिनिट का ही हॉल्ट है ! यह ट्रेन अगर छूटी तो अगली ट्रेन दो घंटे बाद मतलब शाम को और फिर कोई रिजर्वेशन नहीं! मन में इंतज़ार और रात हो जाने का डर हमें किसी हाल में इस ट्रेन को छोड़ने नहीं दे रहा था ! हमारी बोगी एस टू थी जो इंजिन से चार कोच छोड़कर लगी हुई थी ! पर हम वहां पहुँच पाते कि ट्रेन ने धीरे धीरे सरकना शुरू कर दिया ! हमारे सामने जनरल कोच था जिसमें धक्का मुक्की , लोग बस चढ़ते चले जा रहे थे !
कहते हैं, आपके दिमाग की असल परीक्षा होती है, जब परिस्थितियां विपरीत हों! और हड़बड़ाहट में एड्रिनलिन के चंगुल में आ कर आप कभी कभी कुछ काम ऐसे कर जाते हैं, जिनकी सामान्य समय में आप कल्पना भी करने से सहम जाते हैं! हमने भी भीड़ के कदमों से कदम मिला लिए थे! कैसे भी करके हम शायद आखिरी थे, जिसे पैर रखने की जगह मिली !यहां कोई किसी पर रहम करने को तैयार न था! जिन्हें जगह मिली वो उस पर कब्ज़ा जमा कर एक इंच भी टस से मस होने को तैयार नहीं ! मैंने देखा वैसाखी लिए आदमी का एक पैर ट्रेन की सीढ़ी पर, एक हाथ में झोला और वैसाखी और दूसरे से हैंडल को कसकर पकडे है! मैंने और पास खड़े कुछ लोगों ने चिल्ला कर कहा, यहाँ कदम भर जगह नहीं है! मत आओ! गिर जाओगे! चलती ट्रेन से गिर जाओगे !
पर वह भी सफ़र के उस मुकाम पर था जहां से बस आगे बढ़ना ही एकलौता विकल्प बचता है ! वापस मुड़ कर देखो तो रास्ते गुम हो जाते हैं ! प्लेटफार्म छोड़ ट्रेन छप्पक छप्पक रफ़्तार पकड़ती जा रही थी! मदद ढूंढती उसकी आँखों में मौत तैरने लगी! तभी मुझ से रहा न गया, मैंने लोहे के गेट का सहारा लेकर एक हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया! जान मेरी भी दाव पर लगी थी पर सामने किसी को गिर कर मरता देखना! एक पैर पर संतुलन न बिगड़े इसीलिए गेट का सहारा दे कर मैंने अपने पीछे पैर रखने भर जगह बना दी उसके लिए!
अभी बस पांच मिनिट भी नहीं हुए थे कि मुझे मेरी कमर पर एक अजीब सा असहज करने जैसा कुछ महसूस हुआ! पहले लगा इतनी भीड़ में जहाँ सब एक दूसरे से सांस भर की दूरी पर भी नहीं हैं, मेरा वहम हो ! पर मैं चौकन्नी हो गई ! इस छुअन में कुछ अजीब सा इरिटेशन था! कि तभी फिर कुछ अजीब सा अहसास हुआ, कुछ संदिग्ध सा ! अब मैं किसी विडम्बना में नहीं थी! मुझे पता था जान बूझ कर कोई ऐसी हरकत कर रहा है ! अनजान बने रहकर, मैं इतनी सतर्क थी कि वह अगली बदतमीज़ी करता मैंने उसका हाथ झटक लिया ! एक बार फिर मैंने अपने हाथ में उसकी कलाई को कसकर पकड़ा हुआ था! मैं हैरान थी देख कर, जिस इंसान को मौत से खींच कर मैंने ज़िन्दगी दी, जिस एक पैर की इज़्ज़त करते हुए उसके लगभग छूट रहे हाथ को अभी मैंने सहारा दिया, वही मुझे उत्पीड़ित करकी कोशिश कर रहा है ! मौत से उबरे अभी पांच मिनिट से ज्यादा न हुआ था और साहब मोलेस्टेशन करने चल पड़े! उसकी आँखों में हैवानियत तैर रही थी! मैडम जनरल डिब्बे में चढ़ी ही क्यों थी? वह बोला! जहाँ शर्मिंदगी में उसे धँस जाना चाहिए था, वहाँ वह राक्षसी हँसी हँस रहा था, जान कर कि यहाँ कोई पुलिस या टी टी नहीं आने वाला है मदद के लिए! और जनता तमाशबीन है !
वह आगे कुछ कहता मैंने उसका हाथ ज़ोर से मरोड़कर उसे चित्त कर दिया! आगे बुरी मंशा से हाथ बढ़ाने के पहले दस बार सोचना ! जो हाथ सहारा दे कर जीवनदान देते हैं, उस हाथ के छूटने भर की देर है, और ज़िन्दगी मौत का खेल शुरू ! उसका सर हवा में था और दिल कि धड़कनें रेल के पहियों सी धुक धुक धधक रही थी! मौत के खौफ में वह हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा !

डिब्बे में खुसफुसाहट शुरू हो गई! लोगों को फुल ऑन एंटरटेनमेंट मिल गया था! कुछ महीनों के लिए गपशप का मुद्दा भी !

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दीप्ति

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जादू अब भी काम करता है क्या !

उसे करतब दिखाने का बड़ा शौक था ! न जाने किस ही तो हाथ की सफाई वाली किताब से क्या क्या ट्रिक्स सीख कर आता और कितनी ही मासूमियत भरे चहरे के साथ अपने सीधे हाथ का अंगूठा आधा गायब कर देता! वो बात और होती, कि मुझे साफ़ साफ़ उसका मुड़ा हुआ अंगूठा दिखाई देता ! यह टूटना जोड़ना एकदम साफ़ नज़र आते ! पर वह मुझे जादूगर अच्छा लगता ! मासूमियत से भरा !
कभी कभी कुछ चीज़ों का वज़ूद बस इसीलिए होता है कि हम उसे नकारते नहीं हैं ! इसीलिए मैं उसे जादूगर मानती रहती, जब तक उसकी ख्वाहिश होती जादूगर बनने की, बिना उसे जाहिर किये !
उम्र में वह मुझ से छोटा था, एक साल ! पर जहां वाइव्स मिल जाएं, हरी घास सी, वहां घास में बिछे उम्र के पायदानों को कौन ही तवज्जो देता है !
वह इस परीक्षा के बाद यहां से जाने वाला था ! पंडित जी का बड़ा सा बाड़ा,और उस बाड़े में हम दोनों ही किरायेदार! एक न एक दिन जाना हम दोनों को ही था यहां से ! पर पहले उसका परिवार जा रहा था ! और न जाने क्यों, जिस दिन से यह बात मुझे पता चली, उससे नज़रें हटाने में भी जैसे अफ़सोस होता !
सुबह उठते ही उसके घर में रिंकू नाम के नारे लगने लगते ! और मन वहीँ पहुँच जाता,पहली बार मैंने जब यह नाम सुना था, दो साल पहले ! नाक की हड्डी बड़ी हुई थी उसकी, ऑपरेशन हो कर आया था ! मुंह धोते हुए नाक में लगा टांका टूट गया था और वह कैसे तो चीखा था ! सारे आस पड़ोसी जमा हो गए थे वहां, और ओट में खड़ी मैं भी उसे देख रही थी ! फिर हर रोज़ आते जाते उसे देखती रही !
कुछ हुआ है इन दिनों में, उसके होने से कोई खासा फर्क नहीं था मुझ पर, पर उसका न होना जैसे मुझे भीतर तक खाली कर देता ! एक दो दिन वह न दिखे तो मन फिक्र से भर जाता! पर जो भी था, मैं इस होने न होने पर कभी राय न बनाती ! अब तक न तो कोई बात चीत न ही कभी आमना सामना हुआ, ख़याल भी मन में आता तो पाप हो जाता ! वो क्या है न, तब बाड़े में ही बने नियमों में इतनी गुंजाईश नहीं थी, कि लड़का लड़की होने के बाद, होने वाली बात चीत को जगह दे दें ! !
कॉलेज में सेकंड इयर का पहला दिन और पहला दिन जूनियर्स से मुलाकात का भी ! मैं रौब से जूनियर्स कि लाइन को घूरती चली जा रही थी, तभी नज़र मुंह झुकाये पहचाने से चेहरे पर पड़ी! मैंने भौहें चढ़ाते हुए उसकी तरफ देखा, वह सहम सा गया ! उसको ऐसे सिकुड़ता देख कर महीनों से झुलसते मन को कुछ आराम पड़ा और मैंने उसे सामने आ कर अपने बारे में कुछ बताने को कहा ! हमारे पड़ोसी होने की खबर कानों कान नहीं थी किसी को !
कॉलेज बस में चढ़ते हुए, पीछे से एक पकी हुई सी आवाज़ आई ! मैम!! मैंने पलट कर देखा तो वह मिमियाता सा बोला ! मैम! यहाँ रैगिंग तो नहीं होगी!
मैं मुस्कुराई, और बोली ! क्यों ? डरते हो? रैगिंग होगी तो दे देना ! इसमें क्या बड़ी बात है! वह चुप रह गया ! मैं फिर मुस्कुराई, और कहा, डोंट वरी! अब से बस में रोज़ साथ का आना जाना शुरू हुआ! बात मुसीबत जरुरत में साथ खड़े रहने से लेकर, सुख दुःख बांटने तक पहुँच गई थी! बस में चढ़ने के पहले और उतरने के बाद हम उतने अनजान हो जाते, जितना हम दिखाना चाहते!
पर इस अनभिज्ञ बने रहने में एक जुड़ाव था ! बस इतना जुड़ाव जिसे हम रिश्ता कहने से कतराते ! इस अनजान बने रहने में एक उमंग थी, जो हमें क्लासेस में रेगुलर बना रही थी ! यहां प्यार जैसा कुछ भी नहीं था, जो पनप रहा हो! बस एक तसल्ली थी, किसी अनजाने साथ की ! वो तो मैं थी, कि इस विषय पर इतना सोच भी लेती थी, नहीं तो कॉलेज के दिनों में किसे इतनी परवाह !
उसका फर्स्ट इयर निकला और निकलते निकलते उसके मुंह में जवान दे गया ! कितनीं ही बारी तो मैंने अपने दोस्तों को भेज कर उसकी रैगिंग कराई थी ! वह उफ़ न कर पाया, कि साथ वालों की तो एक बार ही हुई, फिर मेरी हर दूसरे रोज़ क्यूँ?
अब तक वह मुझे मैम ही बुलाता और मुझे इस बात से भीतर ही भीतर खासी आपत्ति होती, पर फिर क्या बोलेगा मैम नहीं तो, मैं फिर बिखरी हुई दिमागी चादर समेट लेती !
इसी बीच उसे भूत सवार हुआ था, जादू सीखने का ! हाथ की सफाई किताब का सबसे पहला असर यह था, कि वह बेहद चंचल हो गया था ! यह जादू नहीं हक़ीक़त थी ! हमेशा बस में मेरे पीछे वाली सीट पर ही बैठता ! कभी बैग से कोई चीज़ गायब कर देता, तो कभी कोई किताब रख देता ! कॉलेज इलेक्शन के दौरान, दिन भर खड़े खड़े जब मेरे पैर थक जाते तो मैं जूते उतार कर रख देती सीट के नीचे ! कॉलेज से घर के सफर में न जाने कितनी बार एक जूता गायब हो जाता फिर वापस जगह पर आ भी जाता ! और इसे वह जादू कहता ! मैं चुपचाप सब देखती और मन में ज़ोर ज़ोर से हंसती ! जादूगरी का भूत उस पर सवार होता जा रहा था ! और एक बार जादू दिखाते हुए उसने कह दिया, हम लोग वह घर छोड़ कर जा रहे हैं मैम !
इस बार उसने मेरे चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दी थी ! मेरे वर्फ हुए चेहरे पर वह कब तक गर्म फूंक मारता रहा, पर सब सुन्न ही रहा ! इस आने जाने में न जाने क्या था जो वह उसके साथ ले जाता दिखाई दिया ! और सुबह उसके नाम सुनने से ले कर बस के सफर तक में जमा किया न जाने कितना वक़्त भी जिसे थमने की मोहलत ही न मिली !
तपते सूरज में कपास फटते देखी थी हम दोनों ने पहली बार ! बड़ा अचरज हुआ था, कि खोल फटते ही कैसे रुई का फोहा निकल पड़ता है !और उस दिन के बाद न जाने कितने चुटकुलों कि किताबें उसने छानी और उसमें से गिने हुए चार चुटकुले ला कर सुनाता, छेड़ता मुझे, मज़ाक बनाता, चिढ़ाता, पर मैं जैसे कभी रुई न हुई! इस बात से उसकी खुन्नस जैसे बढ़ती! उसके खीझे हुए रौब को मैं मेरी पसलियों के भीतर रखे दिल के संदूक में सहेज लेती ! वह कुछ और नज़दीक महसूस होता ! पर मुझे ऐतराज़ था कपास होने से ! या दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो डर था, दायरों में सिमटे अरमान फोहे से बादल न हो जाएँ!

जो सफ़र में साथ न रहे, उनका मंज़िलों पर मिलना क्या मायने रखता है ! और इंतज़ार तो तब हो जहां कुछ बंधा हो ! उसकी और मेरी बस के रूट बदल गए थे ! तब फ़ोन का चलन नहीं था ! और न ही इतनी हिम्मत करने का कि घर छोड़ कर वह कभी फिर पुरानी गलिओं में घूमता हुआ मुझे मिल जाये, या फिर मैं उसके दिए पते पर एक बार खोजबीन कर लूँ, कि उसका जादू अब भी काम करता है क्या !

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दीप्ति

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