ये उन दिनों की बात है ….
क़ुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में रचे बसे , मैंने दिल्ली के एक नामी कॉलेज में पोस्टग्रेजुएशन में दाखिला लिया था
मैं जिस शहर से थी, उस कॉलेज की कैंटीन, बाहर बने चाय के ढाबे और धुंध में सिगरेटों के धुओं को मिलते देखने वाले उस डब्बे पर , उस शहर को स्माल टाउन कहा जाता ! अलबत्ता मैं थी स्माल टाउन गर्ल!
ग्रेजुएशन कम्पलीट हो गया था, कॉलेज के दिनों में जितने रंग बिरंगे शरबत कॉलेज की कैंटीन, लॉन, मंदिर और गैलरी में घुले थे, उनसे जैसे पानी अलग मिठास अलग होने लगी थी ! इश्क़ की चादरों पर चढ़े आशिकी के रंग उतरने लगे थे! कुछ खानाबदोश अब भी खुशहाल थे !
वह मेरे कॉलेज का नहीं था, पर मुझे लगता है, उसके कॉलेज से ज्यादा अटेंडेंस उसकी मेरे कॉलेज में लगी होती होगी! उसका घर मेरे घर से बस दस मिनिट की दूरी पर था, पर दस मिनिट की ये दूरी दुनिया के दो छोरों से कम न लगती ! उसके घर जाती या वो फोन करता घर आ रहा हूँ मिलने, यकीन मानो इन दस मिनिट में कितनी बार उल्टी गिनती पढ़नी पढ़ जाती, के बस दिल फट कर बाहर न फिक जाये !
स्माल टाउन गर्ल अब मेट्रोपोलिटन बनने जा रही थी!वो कारीगर था मेरा! मेरे हर गवारु काम पर वह उफ़ करके रह जाता, कभी सर पर हाथ पटक लेता, कभी मुस्कुराकर रह जाता! हर कमी से वाकिफ़ था मेरी और उसे फिक्र भी थी मेरी ! मेरे बिना कुछ खा लेना भी उसे गिल्ट में डाल देता ! आज उसके कॉलेज में कैंपस प्लेसमेंट चल रहे हैं ! एच आर मैनेजर्स के लिए पिज़्ज़ा और गार्लिक ब्रेड मंगाई गई! पिज़्ज़ा के दो स्लाइस और एक स्लाइस गार्लिक ब्रेड उसके हलक से नीचे न उतरे, मैं जो नहीं थी वहां !!
तुरंत उसने फ़ोन किया मुझे ! शाम को घर आ रहा हूँ ! तैयार मिलना! तुम्हें इटालियन रेस्टोरेंट ले जाने वाला हूँ! सच कहूँ उसे पता था पिज़्ज़ा क्या होता है,अब तक मुझे नहीं पता !
मैंने शिमर ब्लैक टॉप पहिना पिंक स्कर्ट और ऑफ वाइट फ्लैट प्लेटफार्म हील! और उसके साथ यह भी याद है, कि घर आ कर रात भर मैंने उल्टियां की, ये चीज़े खाने की प्रेक्टिस नहीं थी मुझे ! मैं क्यों ये डिटेल दे रही हूँ?
चीज़ें दिल में गहरी उतरी हों तो एक एक डिटेल ऐसे ही याद रहती है !
शहर का हाई प्रोफाइल क्लासी रेस्टोरेंट ! स्टेशन के पास बानी इस जगह ने मुझे इतना क्लासी बना दिया कि वहाँ बिताये एक घंटे में एक बाईट भी बिना छुरी कांटे के नहीं खा सकी !उसका यह अहसान कभी तो उतारना था मुझे !
अब पहुंची मैं मेट्रो सिटी ! कॉलेज के पहले दिन ही अलग अलग ग्रुप्स बन गए ! कुछ हाई क्लास स्टूडेंट्स ने मुझ से बात करने में इंटरेस्ट दिखाया और पूछा, हे !! हम एक मीटअप कर रहे हैं ! एम् टू के में ! तुम इनटेरेस्टेड हो ?
मैं कुछ कह पाती कि आवाज़ आई, अरे पूछने की क्या बात है? हाँ चलेगी ! मेरी फ्रेंड ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने साथ एग्जिट गेट की तरफ चल पड़ी ! चल बाहर हमारी मर्सिडीज़ खड़ी है ! मेरा मन घबरा रहा था, मर्सिडीज़ !! अब तक तो किसी कार का इंटीरियर भी नहीं देखा था ! मैं पीछे वाली सीट पर बीच में बैठूँगी! गेट नार्मल कार जैसा ही खुलता होगा या कुछ और सिस्टम हुआ तो , गुगली हो जाएगी !!
एम् टू के पहुंच कर हम मैक डी गए ! आने के पहले मैंने पिज़्ज़ा तक की ट्रेनिंग ली थी, पर वहां बर्गर तो सिलेबस में पढ़ाया ही नहीं गया था ! एनीवेस !! आर्डर प्लेस करने से लेकर बर्गर को रेपर में ही लपेटकर, सॉस पाउच से धीरे धीरे केचप ड्रिप करके , खाने की कला मैंने लगभग बीस मिनिट में सीख ली थी!
अहसान उतारना था उसका, जो अब इस बड़े शहर में इंजीनियर की नौकरी करने आना वाला था! मैं ख़ुशी में पागल उसे रेलवे स्टेशन रिसीव करने गई ! उसका हाथ पकड़ कर भरी बसों में कैसे पीछे वाले गेट से चढ़ना है, और आगे वाले गेट से उतारना है, मैंने उसे सिखाया ! यहाँ लेडीज सीट्स रिजर्व्ड होती हैं ! उस पर नहीं बैठना है !बस से उतरकर मेट्रो स्टेशन पर टिकट के लिए लाइन में न लगना पड़े, तो मैंने दो मेट्रो कार्ड बनवाये ! कार्ड पंच करके एग्जिट पर अपने आप किराया कट जाता है! मतलब अब तक जो सीखा सब उसे बताया !
मेट्रो से उतरते ही भूख ने आगे चलने से मना कर दिया ! चलो तुम्हें अच्छी जगह ले चलती हूँ, मैंने कहा ! अरे अभी रहने दो ! आराम से कभी चलेंगे, फर्स्ट सैलरी आने दो ! वह कुछ सकुचाया !
मैं पलटकर बोली, इस शहर में मैं तुम्हारी सीनियर हूँ! जो कहूँ चुपचाप करते जाना !
हम मैक डी पहुंचे, जा कर फर्स्ट फ्लोर की ग्लास वॉल साइड सीट हमने ली, जहाँ से सारा शहर दौड़ता भागता दिखाई दे रहा था ! दस मिनिट साल से दिखने वाले लोगों को पिछले दो महीने कैसे बीते, जानना हो तो राउंड अबाउट पर रेड लाइट को ग्रीन होते देखने जैसा ! हर सेकंड भारी !
मैं अभी आती हूँ !!
वह ग्लास के बाहर उसी ट्रैफिक सिग्नल को देख कर खोया हुआ था, कि मुझे देख कर वापस होश में आया ! अरे कहाँ चली गई थी !
उसने भौहें चढ़ा कर कहा ! आहाँ !! मुझे क्यों नहीं बुलाया !!
सामने ट्रे में बर्गर फ्रेंचफ्राइस और कोल्डड्रिंक रखी हुई है! मैंने उसे बर्गर थमाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया! उसने हाथ से बर्गर ले कर वापिस ट्रे में रख दिया ! और मेरा हाथ अपने हाथो में समेट लिया !
चहकती आवाज़ें बर्फ होने लगीं ! ख़ामोशी लावा सी पिघल रही थी ! उसकी वीरान आँखों में मुझे चमकते न जाने कितने तारे दिखने लगे, जिन्हें देखने मैं रात भर खिड़की पर बैठी रह सकती थी ! हमारे पास कहने सुनने कुछ नहीं था ! तो बस मैंने सॉस पाऊच उसकी तरफ बढ़ाया,ओपन नहीं हो रहा है! उसने सॉस पॉउच ओपन किया और मेरी तरफ बढ़ाया !
कुछ मुलाकातें होने के बाद अपना होना ज़िन्दगी भर के लिए छोड़ जाती हैं !
ये सॉस पाउच हमारी हर मैक डी मुलाक़ात का बेसिक कॉन्वर्सेशन पॉइंट था ! बिना कुछ कहे जो प्यार, केयर सब ज़ाहिर कर देता था !
आर्डिनरी डेज में दिन चीज़ों को बड़ी आसानी से हम डिपेंडेंसी और कुछ और आगे चलकर बेबकूफ़ी कह देते हैं, प्यार में पड़े लोगों के लिए वह प्यार ज़ाहिर करने और प्यार एक्सेप्ट करने का जरिया होती हैं !
मैं काफी समय इस बड़े शहर में बिता चुकी थी, यहाँ कुछ भी गलत होने पर दो मिनिट में पी सी आर, वुमन हेल्पलाइन बुलाकर लोगों को सीधा करने से लेकर , दुनिया जहान अकेले ट्रेवल करना, खुद अपने हर काम को करने तक हर तरह का एक्सपीरियंस मुझे होता जा रहा था पर मैक डी में जा कर कम्बखत सॉस पाउच ओपन करना नहीं आता ! जब भी वहाँ बैठते, ट्रे रखते ही वह सारे सॉस पाउच एक एक कर ओपन करके मेरे सामने रख देता !
इन बचकानी बातों को अब कई साल हो गए हैं ! हमने ज़िन्दगी में काफी तरक्की कर ली! पर फिर एक सुबह उसका फ़ोन! मैं दिल्ली आया हूँ ! मैक डी !! मिलने आ रही हो न !!
ज़िन्दगी में हर सिलसिला चलता ही छूटने के लिए है ! और खामोश रहकर आँखों से बातें करने के दिन शायद पूरे हो चुके थे !
रिश्ते का नाम बदलने लगा और उससे जुड़े अहसास भी !
वह क्या था और अब मेरा क्या है, मैं नहीं बता सकती ! प्रमोशन लैटर सब दिखाते हैं ! डिग्रडेशन लेटर जैसी कोई चीज़ होती है क्या?
बस ऐसे समझो कि उसके साथ वाली सीट पर कोई और बैठा था! और हमारे बीच मिनिटों का, मुलाक़ातों का, कोई हिसाब नहीं था !
मैं हाथ में बर्गर लिए न जाने किस पल के इंतज़ार में थी , कि तभी उसने मेरे सर पर हाथ से थपकी दी और कहा ! मैडम जौर्नालिस्ट !! अब तो सॉस पाउच ओपन करना सीख लो ! शायद उसे ऑड लग रहा था ! मैं मुस्कुरा दी ! हाथ से बर्गर वापस ट्रे में रख दिया! उसे कैसे बताती, कि इस पल से मैंने यह बर्गर खाना छोड़ दिया है, मैं डाइट पर हूँ !
नॉन स्टॉप लाफ्टर में अब भी मैं उन उदास मुलाकातों की ख़ामोशी को तलाश रही थी !
सुनो !!
उस सॉसपाउच ओपन करने और न करने के बिछ कुछ सरक गया है ! जो चाह कर भी हाथ नहीं आ रहा ! बाकी सॉस पाउच मैं कब ओपन करना सीखूंगी, उसका चुनाव मेरा ! मेरी ज़िन्दगी के फैसले मैं खुद लेती हूँ !
ऑफिस से घर जाते, अचानक कुछ सिहर सा गया मन में ! ड्राइवर कार टर्न करो ! कनॉट प्लेस ले चलो! आज मैं फिर उसी मैक डी में बैठी थी ! पिज़्ज़ा खा कर रात भर कि उल्टियां यद् आई, छत का किनारा याद आया ! मेरी पहिनी स्कर्ट और तुम्हारा जीन्स याद आया ! कॉलेज की फेयरवेल और तुम्हारा स्कूटर याद आया ! पर कुछ है, जो याद करके भी याद नहीं आ रहा ! और मैं उसे तलाशना भी नहीं चाहती !
तुम्हारी
दीप्ति !
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